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जात-पात

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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अपनी अरुणिमा को बिखेरते हुए सूर्य देव हिमालय की पावन वादियों में पहाड़ियों के बीचों-बीच बसे इस छोटे से सुंदर एवं सुरम्य गाँव को ऐसे नहला रहे थे, कि मानो आद्या सुंदरी, परा शक्ति प्रकृति का चाकर बन कर अपनी सेवाएं नियमित दे रही हो। घाटी के इस छोटे से गाँव में कितनी आत्मीयता थी, कितना प्रेम और भाईचारा, कहते नहीं बनता। न कोई लड़ाई, न कोई झगड़ा। न ही तो शहरों जैसी आपा-धापी और लूट-खसोट। चारों ओर थी तो सिर्फ प्राकृतिक सुंदरता और असीम सुकून।
नित्य प्राकट्य की तरह आज भी आदित्य देव अपनी सेवाएं देने धीमे-धीमे ताप और विशाल प्रकाश के साथ पहाड़ी की चोटी पर निकल आए थे। गाँव की जानकी चाची की आवाजें रोज की तरह कानों में गूँज उठी।
“राधा, शालू, कमला, मनु उठो भाई उठो, देखो तो सूरज चढ़ आया है। सारे संसार में उजाला हो गया है और तुम…।” यह बोलते-बोलते जानकी चाची उस कमरे में घुस गई, जहाँ राधा सोई थी।
“अरे ओ मेरी भोली-सी, प्यारी-सी, अच्छी-सी दादी। क्यों रोज सुबह-सुबह अपनी कोयल-सी मधुर आवाज़ का प्रचार-प्रसार करती फिरती हो ? आस-पड़ोस के भी अलार्म का काम करती हो।” बिस्तर पर ऊंघते हुए से पालथी मार कर जानकी चाची के झुर्रियों से लबरेज चेहरे को चूमते हुए राधा बोली ।
“तुझे अब सुबह इतनी देर तक सोए रहना शोभा नहीं देता राधा। शादी की उम्र हो गई है। माँ का हाथ बंटाया कर। कुछ सीख भी जाएगी और माँ की मदद भी हो जाएगी।” जानकी चाची बूढ़ी आँखों की कोरों में पानी भरते हुए से बोली।
“बस भी कर मेरी प्यारी दादी। जब देखो तो तब उपदेश। और हाँ, जो ये बात-बात पर इन झील-सी आँखों में लहरें उठाती रहती हो न, ये मत किया करो जी।” राधा जानकी चाची की झुर्रियों से लबरेज पोपलों को दोनों ओर से पकड़ते और पुचकारते हुए से बोली।
“कैसे चुप रहूँ बच्चा ? दादी जो हूँ तेरी।” जानकी चाची कोरों का पानी पोंछते और राधा का सिर सहलाते हुए बोली।
“उमा… ओ उमा…,” बाहर से मोहन भैया ने आवाज लगाई।
“जी आई।” अंदर से रोटियों को बेलते हुए उमा भाभी बोली।
“अरे मैं काम पर जा रहा हूँ। देर हो रही है। बाहर कुछ सामान रखा है, देखना, उठा लेना। राधा को बोल दो चाहे” जाते हुए से मोहन भैया बोले।
“जी उठा लूंगी। आपकी लाड़ली तो अभी खर्राटे मार रही होगी। बिगाड़ रखा है बुढ़िया ने।” अंदर से उमा भाभी बोली।
“ठीक है, उठा लेना। बाहर गाय भी चुग रही है। कहीं खा न ले सामान।” मोहन भैया सड़क से बोले।
“जी उठा लूंगी। शाम को जल्दी आना।” अंदर से उमा भाभी बोली, पर शायद ये सब मोहन भैया ने नहीं सुना हो। वे निकल पड़े थे।
गाय को हट्टका करते हुए सामानों के थैले लिए हुए राधा और जानकी चाची रसोई में आई।
“क्यों री बुढ़िया की बच्ची ? क्या कह रही थी ? बुढ़िया ने बिगाड़ रखा है!” जानकी चाची ने उमा भाभी के कान प्यार से पकड़ते हुए पुचकारते हुए कहा।
“सॉरी-सॉरी अम्मा जी! अब नहीं बोलूंगी।” अपने कान पकड़ते हुए माफीनामे की तहजीब में उमा भाभी बोली।
“खबरदार जो आगे से किसी ने मेरी लाड़ली पोती को कुछ कहा तो।” फिर से आँखों की कोरें नम करते हुए से जानकी चाची बोली।
“नहीं कहूंगी कुछ अम्मा, पर इसकी माँ हूँ। चिंता तो होती है न! २४ की हो गई है। सबको आप जैसी सास थोड़े ही न मिलती है।” उमा भाभी रुआँसा चेहरा करके बोली ।
“सो तो मैं भी इसे समझाती रहती हूँ बेटा, पर यह मानती कहाँ है ?” यह बोलते-बोलते जानकी चाची की आँखें छलक आई थी।
“ओ री ओ सुंदर सास-बहू की जोड़ी। ये रोना-धोना छोड़ो और कुछ नाश्ता-पानी कराओ। भूख लगी है। तुम्हारी राधा जिंदा है, अभी मरी नहीं है।” राधा ने दोनों को छेड़ते हुए से कहा।
“चल! झल्ली कहीं की ? पहले नहा-धो कर आ, फिर खाना कुछ।” जानकी काकी आँसू पोंछते हुए बोली।
अपनी अलहड़ मस्ती में राधा नहाने चली जाती है। इस बीच चाची और उमा भाभी में यह बात हो रही थी, कि परसों राधा को देखने लड़के वाले आ रहे हैं-
“उमा के बाबू जी बोल रहे थे, कि बेटी जवान हो गई है। हाथ पीले करना हमारा फ़र्ज़ है। फिर बी.ए. भी इस साल इसका पूरा हो जाएगा।” उमा भाभी चाची से बोल रही थी।
“सो तो है बच्चा। बेटियाँ तो है ही पराया धन। कब तक पास रखोगे ?” चाची, उमा भाभी से बोल रही थी।
“जब देखो तब सब बस मेरे पीछे हाथ धोकर पड़े हैं। किसी न किसी तरह से मुझे जल्दी भगाने की तैयारी में चुपके-चुपके लगे हैं। मैं नहीं करूंगी अभी शादी, हाँ कह दिया मैंने। जब तक एम.ए. न कर लूँ।” राधा बाल झाड़ते हुए झल्ला कर बोली।
“बस कर री ओ छमक-छल्लो। कब तक बाप के यहाँ बैठी रहेगी ? २४ की हो ली, फिर कब ५० की हो जाएगी, तब करेगी शादी क्या ?”
“कौन वरेगा तब तुझे तेरी उम्र की थी न हम, तो २-२ औलाद जन बैठे थे।” पास मनु को नहला रही चम्पा दीदी व्यंग्य करते हुए बोली। वह यहाँ मायके, अपने बच्चों के साथ मेहमान बनकर आई थी। शायद राधा का यह रिश्ता भी उसी की सलाह पर उमा भाभी और मोहन भैया करवा रहे थे, पर इसमें राधा को विश्वास में न लिया गया हो शायद।
“वह आप का जमाना था फूफी। अब मॉडर्न जमाना है। समझी!” राधा पुचकारते हुए से बोली।
“हाँ-हाँ, तोड़ ले अपने बाप की रोटियाँ और तुझे कौन समझाए ?” चम्पा दीदी बोली।
“बस भी कर चम्पा! तू हमेशा इसे छेड़ते हुए क्यों ताने मारती रहती है ?” जानकी चाची डांटते हुए बोली।
“हाँ-हाँ माँ, और चढ़ाओ इसे सिर पर। तूने ही तो इसे बिगाड़ रखा है। ठीक कहती है भाभी।” चम्पा दीदी बोली।
“हर चीज का एक समय होता है बच्चा। शादी की भी एक उम्र होती है। ठीक कह रहे हैं सब।” राधा की बेनी बनाते हुए चाची बोली।
तीसरे दिन लोक रीत के तहत बुलाए गए मेहमान आते हैं और राधा जैसी सुंदर व पढ़ी-लिखी लड़की को देख कर रिश्ता तुरंत पक्का कर लेते हैं।
दिन गुजरते गए। यहाँ राधा ने बुद्घि से तो यह रिश्ता कबूल लिया था, पर दिल से नाखुश ही थी। एक दिन पास में एक मेला था। राधा अपनी सहेली रूपा के साथ मेला देखने चली गई। रास्ते में उन्हें पिंकू मिला, जो उसका क्लासमेट था। वह पास के गाँव का रहने वाला था और अच्छा लड़का था। उसने गाड़ी रोकी।
“अरे राधा और रूपा कहाँ जा रही हो ?” पिंकू ने कहा ।
“ओह पिंकू! हम मेले जा रही हैं और तुम ?” रूपा ने चौंकते हुए कहा ।
“मैं भी मेले जा रहा हूँ। आओ चलो बैठो।” पिंकू ने कहा।
दोनों गाड़ी में बैठ जाती हैं, और तीनों बतियाते-बतियाते मेले पहुंचे। बातचीत से माहौल तो पहले ही खुशनुमा हो गया था, उस पर मेला भी आ गया। मेले के पास रास्ता कुछ खराब था। सो राधा ने पिंकू को हाथ देकर मदद करने को कहा। पिंकू ने जैसे ही ऊपर से नीचे को राधा को ऊपर खींचने के लिए हाथ किया, त्यूं ही उसकी नजर राधा के वक्ष स्थल के ऊपर वाले अधखुले भाग पर पड़ी। राधा ने पिंकू को देखते हुए भांप लिया। दोनों के दिल में एक अजीब-सी हलचल हुई, जो शायद इन दोनों ने पहली बार महसूस की थी। वे एक-दूसरे को संभालते-संभालते नैन-मटक्के में मेले के पास वाले कीचड़ में फिसल गए। दोनों के कपड़े खराब हो गए। रूपा को वहीं बिठा कर वे पास के नाले में अपने कपड़े साफ करने गए ।
“तुम्हारी सगाई सच में हो गई क्या ?” कपड़ों को झाड़ता हुआ पिंकू शरमाते हुए बोला।
“क्यों ? नहीं हुई होती तो तब क्या तू…?” राधा ने स्त्री सुलभ मुस्कुराहट बिखेरते हुए नीची नजर कर के तिरछी चितवन निहार कर कपड़े धोते हुए कहा।
“नहीं-नहीं, बस सुना था, सो पूछ लिया।” पिंकू उसी मुद्रा में बोला।
“हाँ हो गई है। ठीक सुना है तुमने।” राधा ने भी उसी मुद्रा में जबाव दिया ।
वे दोनों बातों ही बातों में मस्त हो गए थे। बाहरी परिचय तो उनका पहले से ही था, पर आज रूहानी परिचय भी हो गया था शायद। ऊपर से धीमे से रूपा की आवाज आई, “ओ री ओ राधा…जल्दी कर बच्ची। तेरा मंगेतर मेले में पहुंच गया है शायद। फोन कर रहा है।”
“उठा ले तू ही।” राधा ने ठिठोली करते हुए कहा ।
“अरे ओ लैला! कहीं उसने तुम्हें यूँ देख लिया न तो पानी में आग लग जाएगी आग, हाँ। जल्दी कर।” रूपा ने चटखनी भरते हुए कहा।
“अच्छा पिक्की” हाथ हिलाते हुए राधा ने पिंकू से जाते हुए कहा।
राधा के मुख से अपने लिए पिंक्की सुन कर पिंकू के दिल की आग में घी पड़ गया। शाम को राधा अपने घर पहुंची और सीधा अपने कमरे में चली जाती है।
“राधा…ओ राधा…” जानकी चाची ने आवाज लगाई।
“जी दादी।” राधा अंदर से कपड़े बदलते हुए बोली।
“देख तो तेरा फोन आया है।” चाची बोली।
“किसका है दादी ? ” राधा बोली।
“किसका होगा ? तुझे नहीं मालूम क्या ?” चाची ठिठोली करते हुए बोली।
चाची की बातों से राधा ने अंदाजा लगा लिया, कि उसके मंगेतर का ही होगा। उसने उतनी तवज्जो न दी, कपड़े बदलती रही। इतने में शालू खिखियाते हुए राधा के कमरे में फोन ले कर आया।
“सुन भी तो लो दीदी। जीजा जी नाराज हो जाएंगे नहीं तो।” वह छुटकू राधा को छेड़ते हुए से बोला।
“होने दे नाराज, पीछा छूटेगा।” राधा अपनी घर वाली कमीज़ पहनते हुए बोली और उसके हाथ से फोन झुंझला कर ले लेती है।
“हेलो! कौन है ? अब बोलो भी चुप क्यों हो ? कपड़े बदल रही थी, देर लग गई। इसमें नाराज होने की क्या बात है ? बोलो भी कुछ, नहीं तो मैं काट रही हूँ।” राधा त्योरियों को चढ़ाते हुए बोली।
“सुन-सुन, मैं पिक्की बोल रहा हूँ। फोन मत काटना प्लीज” फोन पर पिंकू ने धीरे से कहा।
यह सुनकर राधा घर के पिछवाड़े फोन सुनने चली गई। घरवालों ने सोचा कि यह हमसे शरमा कर दामाद से बात करने पिछवाड़े गई है। चाची ने राधा का फोन पहले उठाया था। उस पर किसी मर्द की आवाज सुन कर अंदाजे से दामाद का फोन होने का अनुमान लगाया था।
सब खुश थे कि बेटी को दामाद का फोन आया है, पर किसे मालूम कि राधा ने फोन पर किसी और से कल मुलाकात का प्रोग्राम फिट किया है।
बाहर हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। कस्बे के नुक्कड़ पर बने रेन शेल्टर में राधा और पिंकू २ के २ बैठे हैं। कोई उन्हें देख नहीं रहा है।
“क्या तुम अपने मंगेतर से खुश नहीं हो ?” पिंकू ने राधा से कहा।
“किसने कहा ?” राधा ने तल्खियों में कहा।
“तुम ही तो कल फोन पर कह रही थी” पिंकू ने कहा। पिंकू ने राधा को शालू के छेड़ने पर बड़बड़ाते हुए सुन लिया था।
“हाँ नहीं हूँ खुश, तो क्या कर लोगे तुम ?” राधा बोली।
“तूने क्या यह फिल्म समझी है ? कि हीरो, विलेन को पीट देगा।” पिंकू बोला।
“हीरो! और वो भी तू ?” राधा हँसते हुए से बोली।
“हाँ-हाँ मैं। क्यों आपको कोई शक है ?” पिंकू बड़े रुआब से बोला।
पिंकू की यह अदा तो राधा को और भी घायल कर गई।
“अच्छा-अच्छा एक बार फिर से करो ऐसा भला।” राधा ने अनुनय की तो पिंकू ने क्रिया पुनः दोहराई।
उस रोज राधा की ससुराल वाले राधा की शादी की बात करने आए थे।
“देख भाई समधी, अगले महीने तक ब्राह्मण से लगन जोड़ लेना।” राधा के ससुर जी मोहन भैया से बोल रहे थे।
“हाँ बेटा।” चाची ने हामी भरते हुए कहा।
शादी का लग्न शोध लिया गया था और तैयारियाँ दोनों ओर जोरों से थी। एक दिन दोनों परिवारों के लोग शहर शादी के जेवर-कपड़े खरीदने आए थे। राधा को भी पसंद का सामान खरीदने के लिए साथ लाया गया था। सभी खरीद फरोख्त कर रहे थे। इस बीच राधा टॉयलेट गई, पर वहाँ से वापिस नहीं आई। थोड़ी देर बाद सबका ध्यान जब इस ओर गया तो दोनों परिवारों में खलबली मची। फोन लगाया, वह स्विच ऑफ आ रहा था। शहर का कोना-कोना छान डाला, पर कोई खबर नहीं मिली। शाम होने वाली थी। तब सबने निर्णय लिया, कि पुलिस में रपट दर्ज की जाए। रपट लिखवाते ही सब अपने-अपने घरों को चले गए।
३ दिन बाद डाकिया चिट्ठी को चाची के पास दोपहर को छोड़ गया था। चाची को पढ़ना आता नहीं था। शाम को जब भैया और भाभी आए तो उन्हें दे दी।
“देखना मोहन तेरे नाम डाकिया चिट्ठी दे गया था।” चाची बोली।
मोहन भैया ने जब चिट्ठी पढ़ी, तो आग-बबूला हो उठे।
“नालायक को यह दिन दिखाने के लिए ही पाला-पोसा था हमने। नाक कटा डाली मूर्ख ने हमारी। मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ा कहीं। क्या बोलेंगे समधी जी को। चलो उनसे तो ले-दे के निपट भी लेंगे, पर समाज को क्या कहेंगे ?” मोहन भैया गुस्से से लाल होकर बोल रहे थे।
“अरे हुआ क्या है ? जरा हमें भी तो बता। बस उसे कोसता ही जा रहा है। ऐसा क्या किया है उसने ?” चाची ने डांटते हुए से कहा।
“तुम तो चुप ही रहो अम्मा। तुम्हीं ने उसे अपने लाड़-प्यार से बिगाड़ा, जिसका परिणाम आज हम भुगत रहे हैं।” मोहन भैया झल्ला कर बोले।
“अरे मुझे जो भला-बुरा कहना है, सो बाद में कहना। पहले बता तो सही हुआ क्या है ?” चाची भी कड़की से बोली।
“होना क्या है अम्मा ? यह कोर्ट की न्यायिक सूचना है, जिसमें लिखा है, कि राधा ने पवन सुपुत्र बृजमोहन से शादी कर ली है और क्या ?” मोहन भैया गुस्से से बोले।
उस दिन चम्पा दीदी पुनः राधा के गायब होने की खबर सुन कर यहाँ खबर-संभाल करने आई थी। वह चौंक कर बोली, “क्या ? उस बृजमोहन के लड़के से, जो पड़ोस के गाँव का है ?”
“हाँ वही” मोहन भैया ने ऊंघते हुए बोला।
“देखा न। आखिर उसने अपनी करतूत दिखा ही ली। मैं न कहती थी, कि यह लड़की को तुमने कुछ ज्यादा ही सिर पर चढ़ा रखा है। बिगाड़ दी ना उसने जात। मेरी सुनता ही कौन था ?” चम्पा दीदी इठलाते हुए-सी बोली।
“इससे अच्छा होता कि वह मर ही गई होती, तो एक ही दु:ख तो होता?। अब तो वह जिंदगीभर खुद भी मरेगी और हमें भी मारती रहेगी।” छाती पीटते और रोते हुए उमा भाभी बोली।
“वह जिए अब अपने हाल में। मैं उसे अपने घर में घुसने नहीं दूंगा। मेरे लिए वह मर गई समझो।” मोहन भैया ने झुंझलाते हुए से कहा और अंदर चले गए।
कुछ दिन बाद राधा ने घर पर फोन किया। उमा भाभी ने उठाया, रोते-रोते बोली, “बेटा क्या कसर रखी थी हमने तुझे पालने में ? तूने तो हमें कहीं का न छोड़ा! भागना भी था तो किसी अपनी जाति वाले के साथ भागती। क्या जरूरत पड़ी थी पिंकू के साथ भागने की ? रिश्ता मंजूर न था तो मुझसे कहती, अपनी दादी से कहती, पर तूने तो हमारी नाक कटवा दी। रोते-रोते उमा भाभी ने फोन काट लिया।
राधा अभी अपनी बात कह ही नहीं पाई थी। वह कैसे बताती कि इश्क जात-पात को नहीं देखता। वह तो बस हो जाता है, और जब होता है तो सब नियम तोड़ कर अपनी मंजिल को लक्ष्य कर निशाना साधता है। वह जानती थी कि अभी माँ का ही गुस्सा ठंडा नहीं है, तो पिता जी का तो सातवें आसमान पर होगा।
कई दिन बीते पीछे बृजमोहन जी मोहन भैया के घर सुलह की बात करने आए। वह अपनी बिरादरी का गाँव में ही नहीं, इलाके में रसूखदार आदमी था। ऊँची जाति के लोग भी उसके ओहदे की तासीर के चलते ऊँची जुबान में बात नहीं करते थे, पर वे दिल और व्यवहार के बहुत अच्छे थे। उन्होंने ही उस दिन कोर्ट में राधा और पिंकू की शादी करवाई थी। पिंकू को फोन पर जब राधा ने अपनी शादी की बात बताई थी, तो उन्होंने दोनों की बात सुन ली थी। सारी जमावट फोन पर इन्हीं की छत्र-छाया में सम्पन्न हुई थी।
“अब क्या लेने आए हो बृजमोहन साहब ? बेटी को तो ले गए हो बहला-फुसलाकर। उससे पेट नहीं भरा क्या ? और क्या हमारी किरकिरी करने में अपनी ऊँची समझते हो ?” मोहन भैया ने अनमने मन से कहा।
“नहीं मोहन बाबू, हम किसी को नीचा दिखाने नहीं आए हैं। बस सुलह करने आए हैं।” बृजमोहन शांति से बोले।
“काहे की सुलह ? कोई सुलह नहीं होगी। जाओ, चले जाओ यहाँ से। हमारे लिए वह मर गई और उसके लिए हम।” मोहन भैया झल्ला कर बोले। यहाँ गाँव वालों ने मोहन भैया की बात की दाद दी। उससे वे और शेर बन बैठे। उन्हें लगा, कि अब गाँव वाले मेरा आदर फिर से वैसे ही करेंगे, जैसे पहले करते थे।
“देखो मोहन बाबू! अब छोड़ो भी सारा गुस्सा। बच्चों ने प्यार किया, कोई पाप नहीं किया। अब दोनों की कानूनी शादी भी हो चुकी है। अब तो उन्हें माफ कर लो और अपना लो। बच्चों को जितनी ही जरूरत हमारी है, उतनी ही आपकी भी है।” बृजमोहन पुनः शांति से बोले।
“क्या बात करते हो बृजमोहन साहब ? अपने ओहदे और पैसों की धौंस मत जमाना। किस कानून की बात करते हो तुम ? वही कानून तो तुम्हें जाति-पाति के प्रमाण-पत्र बांटता है। फिर हम कैसे तुम्हारे साथ उठना-बैठना मंजूर करें ?” मोहन भैया त्योरियाँ चढ़ाते हुए बोला।
“देखो मोहन भैया। इस संसार में कुदरत ने २ ही जाति बनाई है। एक स्त्री और दूसरी पुरुष। वही सृष्टि के घटनाचक्र को चलाने में सदा से कुदरत का साथ दे रही है। बाकी तो सब मनुष्य मन की खुरापात है। इसलिए इस जात-पात के विवाद में न पड़कर बच्चों के बारे में सोचो।” बृजमोहन शांति से समझाते हुए बोला।
“अपना यह ज्ञान कहीं और सुनाना, यहाँ नहीं। बड़े आए उपदेश देने। जब तुम एस.सी. का प्रमाण-पत्र ले कर आरक्षण लेने के लिए अपनी जाति बड़े फखर से बताते हो, तब यह उपदेश नहीं देते ? तब नहीं कहते, कि हमें जाति प्रमाण-पत्र नहीं चाहिए। हमें मानव होने का प्रमाण-पत्र दो। अब अपनी जाति स्वीकारने में हेठी समझ रहे हो।” मोहन भैया ने अपने मन की सारी भड़ास उतार दी।
“अरे भाई, क्यों बात उलझा रहे हो ? मैं मानता हूँ कि आरक्षण होना ही नहीं चाहिए। हो भी तो जातियों के आधार पर न हो, आर्थिक आधार पर हो। यह बहुत पहले हो जाना चाहिए था। ऐसा अगर समय पर हो गया होता तो आजादी के इन सत्तर साल में हमारे बच्चों ने आपसी रिश्ते कायम कर जात-पात का रोग ही मिटा दिया होता, पर यह तो राजनीतिक मसला है। इसमें हम क्या कर सकते हैं ? और फिर इन बच्चों का तो कोई दोष ही नहीं।” बृजमोहन ने पुनः समझाते हुए कहा।
“अच्छा! तुम कुछ नहीं कर सकते हो या कि जानबूझ कर कुछ करना ही नहीं चाहते ? बृजमोहन साहब तुम जैसे रसूखदार जब इस बुराई का विरोध करें न, तो सरकारों को रातों-रात सब बदलना पड़ेगा। हम तुम्हारी चालाकियों को खूब समझते हैं। उससे पहले कि गाँव वाले तुम्हारे साथ कुछ बुरा कर डालें, अपने रास्ते चलते बनो।” मोहन भैया विलक्षण मुद्रा में बोले।
बृजमोहन समझ गए, कि इन तिलों से तेल नहीं निकलेगा। अपने छोटे को इशारा कर वे घर को चले गए।
वर्षों बीत गए। वहाँ राधा और पिंकू के बेटी हुई। वह ४-५ साल की हो गई थी। अब सुंदर बहू का मोह धीरे-धीरे राधा की सास से उतर रहा था। हर रोज दोनों में घर के किसी न किसी कामकाज पर नोक-झोंक होती ही रहती थी। उस दिन सास ने राधा को बहुत खरी- खोटी सुनाई थी, “तेरे माँ-बाप ने तुझे रखा कहाँ था ? खाना भी बनाना नहीं सिखाया। किसी भी काम की नहीं है डायन। मेरे बेटे को डोरे डाल कर अपना उल्लू सीधा कर गई बेईमान।” और भी न जाने क्या कुछ ?
राधा अपनी बच्ची को उठा कर दुखी हो कर अपने पिता के यहाँ चली आई। सोचा माँ-बाप माफ कर लेंगे। शाम के समय जब वह मायके पहुंची तो पिता आँगन में बैठे थे। उससे पहले कि वह अपना दु:ख कहती, मोहन भैया ने आते ही उसे डांटना शुरू किया, “क्यों आई है यहाँ अब नालायक ? रह गई है कुछ कसर क्या ?”
राधा रो रही थी । उसकी नन्हीं-सी मुन्नी उसके आँसू पोंछ रही थी और तोतली आवाज में बोल रही थी, “तुप तरो मम्मा! तुम तियुं डो डही हो? यह तुम्हें डांट रहे हैं। ये तोन है ?”
मोहन भैया की ऊँची आवाज सुन कर घर के सब बाहर आ गए, पड़ोस के लोग भी बाहर आए। राधा अपराधी की तरह नजरें झुकाए खड़ी थी।
“चुप भी कर अब मोहन। बस बोले ही जा रहा है। देखता नहीं, कि कितने दिनों बाद बेटी आई है ?” चाची ने डांटते हुए कहा, और राधा को गले से लगा कर हाल-चाल पूछा।
दोनों को बतियाते और रोते हुए देख उमा भाभी की आँखें भी भर आई। लोगों को बाहर देख कर राधा को दोनों मियां-बीबी ने पुनः डांटना शुरू किया। डांटते-डांटते अंदर चले गए। सब लोग बाहर दाद दे रहे थे। मोहन बिल्कुल ठीक बोल रहा है। इस कुलटा ने तो सारे गाँव की नाक काट ली। उधर, चाची ने सबको डांटा और भगा दिया।
अंदर भैया और भाभी आपस में मशविरा कर रहे हैं कि इसे रात को रखना कहाँ है ? लोक-लाज से बचने के लिए उसे बेटी के साथ नीचे वाले कमरे में रखने का निर्णय हुआ। सोचा धीरे-धीरे लोग भूल जाते हैं, तब सब ठीक होगा।
उस रात राधा को निचले कमरे में रखा गया। सुबह जब राधा की नन्हीं बच्ची मम्मी-मम्मी चिल्लाने लगी तो सब निचले कमरे की ओर दौड़े। देखा, तो वहाँ राधा थी ही नहीं। बच्ची को पूछा गया कि मम्मी कहाँ गई ?, पर उसे कुछ भी मालूम नहीं था। वह तो बस रो रही थी।
शालू रोता-रोता आया “अरे पापा, पापा, दीदी वहाँ चट्टान के पास पड़ी है। उसके मुँह से खून निकल रहा है।”
सब वहाँ भागे-भागे जाते हैं, पर राधा अब चली गई थी।
बच्ची मम्मी से चिपटना चाह रही थी, पर उसे दूर ले जाया गया। सब रो रहे हैं। मोहन भैया भी फूट-फूट कर रो रहे हैं। शायद राधा ने रात को बच्ची को सुला कर उस पास वाली चट्टान से कूद कर अपनी जान दे दी थी। वह कुछ सहन नहीं कर पाई थी शायद! उसकी सहन शक्ति जवाब दे गई होगी। वहाँ सास की किच-किच और यहाँ उसे निचले कमरे में रखा जाना शायद रास नहीं आया। वह अंदर ही अंदर कुढ़ कर अपनी जान दे देती है।
उधर, शहर से राधा के पति व ससुर घर पहुंचते हैं। उनको राधा की सास ने कहानी उलटी बता दी।पोस्टमार्टम हुआ और लाश जला दी गई। पुलिस प्रकरण दोहरा हो गया था। राधा के घर वालों ने मोहन भैया पर केस किया और मोहन भैया ने घरेलू हिंसा का केस किया। दोनों परिवारों में आग लगी है। यहाँ पिंकू भी बहुत दुखी है। वह तो शायद दूसरी शादी कर के संभल जाएगा, पर बेचारी उस नन्हीं-सी बेटी की माँ को कौन वापिस लाएगा ? वह हर रोज मायूस हो कर उस रास्ते को देखती रहती है, जहाँ से उसकी माँ को जलाने के लिए ले जाया गया था।