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जीवन रंग कवियों के संग

शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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जीवन और रंग…

रंगों से जीवन आकर्षक दिखाई देता है। जीवन में कोई रंग हल्का है, कोई रंग चटकीला। कोई मध्यम रंग है, कोई रंगहीन श्वेत या कृष्ण रंग। यानि मानव जीवन प्रत्येक रंग से सुसज्जित है अपना-अपना सुख-दु:ख लिए। जीवन है तो संघर्ष रंग भी होगा ही। जीवन संघर्षों से ही अनेक रुप खिलते-मिलते हैं, लेकिन सब कुछ विस्मृत कर जीवन रंग कवियों के संग खेलें तो रंग ऐसे फबते हैं।
फागुन मास बसन्त के आगमन पर पलकें बिछाए गीत गाती श्रीकृष्ण के रंग में बावरी मीरा, “होरी खेलते हैं गिरधारी”, कविवर रसखान हांक लगा गाते हों, “मोहनहो-हो, हो-होरी”, और नवआगमन की खुशी में राजा जयसिंह का अपनी अल्पव्यस्क पत्नी संग रास करते देख रीति कवि पद्माकर भी कहां चूकते हैं यह कहने से-“आई खेला होरी, कहूं नवल कइसओरई भोरी”, सूरदास जी बाल कृष्ण के रुप में कह उठते हैं, ‘चिरजीयो होरी को रसिया चिरजीयो’। इसी तरह से आधुनिक कवियों ने भी जीवन में ऱगों के महत्व की परख होली के रंगों में रंग कर की है। चाहे वे भारतेंदु जी हों,- ‘गले मुझको लगा वो एक दिलदार होली में’, या फिर ‘निराला’ ‘नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे’ मस्त हो जाते हैं। नव कवि बनारसी किसी ओर के संग होली न खेल ‘संपादक की होली’ मना रंग भर देते हैं।
और क्या कहें जाति-पाती तज कवि नज़ीर अकबराबादी होली के रंग का गुणगान कहें बिन न रह सके; कहते हैं-“जब आई होली रंग भरी, होली की रंग फिशानी से हैं रंग यह कुछ पैरहन का’, अमीर खुसरो नजाकत से होली खेलते हैं,-“देता था मोहे बिजोरा थी, आज रंग है ऐ माँ रंग री’। आधुनिक कवि मैथिलीशरण गुप्त ‘होली-होली-होली’, हरिवंशराय बच्चन, ‘ विश्व मनाएगा होली और खेल चुके हम फाग समय से, जयशंकर प्रसाद, ‘होली की रात’ फणीश्वरनाथ रेणु ,’साजन! होली आई है! सुख से हॅंसना, जी भर गाना’, और दुष्यंत कुमार ‘होली की ठिठोली’ रचकर भारतीय संस्कृति और त्यौहार को अपने संस्कार समर्पित करते हैं।
‘आई-आई रे होली’, ‘जमुना तट श्याम खेलते होरी’, ‘बरसाने में सामने की होरी रे’, ‘रंगीलो रंग डाल गयो री’, ‘होरी खेलें रघुबीरा अवध में’ आदि अनेक रचना होली के ब्रज लोक गीतों के बिना आधी-अधूरी हैं।

जीवन के कैनवास पर उत्साह रंग ही भरते हैं। हरिवंशराय के शब्दों में कहें तो, “यह मिट्टी की चतुराई है, रूप अलग औ’ रंग अलग, भाव, विचार, तरंग अलग हैं, ढाल अलग है ढंग अलग…”। जीवन के समस्त रंग होली में प्रकृति पर आभा से छिटक-बिखर जाते हैं नए कपोलों के उंमग-तरंग का स्वागत करते हुए सर्वत्र छा जाते हैं।

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