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जीवन संदेश

सच्चिदानंद किरण
भागलपुर (बिहार)
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जो गिर गया,
उसे गिरने का क्या डर
उठ खड़े हो जाना,
संभल के फिर तो
वो आदमी हो जाते या हैवान।

उठना, संभल जाना,
स्वयं है काल की पुकार में
जाना है किधर
पूरब, पश्चिम, उत्तर व दक्षिण
या लोक-परलोक।

निश्चय होता सामर्थ्य में,
शौर्य क्षमता की
अभिनव गरिमा में,
कीर्तिमान के परिवेश में।

लघुता‌ में ही प्रभुता है,
नीचे जमीन पर बैठे
उच्चतम शिखर पाने का,
प्रयास ही आकांक्षाओं में
दिव्यता की सीढ़ी है।

कदम फिसले तो फिसले,
पर अपने ज़मीर की
परिपक्वता में तनिक
खोट‌ नहीं।

प्रत्येक सूर्यास्त में,
नई सुबह का पदार्पण निश्चित
जो शाश्वत है,
प्रकृति के स्वरूप में
सदृश्य हो बलिष्ट व,
सदिष्ट‌ भावों की परिकल्पना से।

पृथ्वी की परिक्रमा,
होती सूर्य की चहुँ दिशाएं
निरंतरता में अपने स्थाई ध्रुव से,
प्रकृति भी कार्य करती
ब्रह्मांडलीय‌ परिप्रेक्ष्य में,
अपनी प्रबल क्षणिका में
उतार-चढ़ाव की स्थिति
देखते हुए।

जीवन की गंभीर आपदाओं से,
घबराना तो निश्चय ही
फिर भी धैर्यता को खोना,
असफलता को दावत
देने-सा ही है।

तो! गिरने वालों से
क्या भरोसा ही!!
उठो सफलों‌, दौड़ लगाओ,
प्रकृति के शुभ संदेश से॥

परिचय- सच्चिदानंद साह का साहित्यिक नाम ‘सच्चिदानंद किरण’ है। जन्म ६ फरवरी १९५९ को ग्राम-पैन (भागलपुर) में हुआ है। बिहार वासी श्री साह ने इंटरमीडिएट की शिक्षा प्राप्त की है। आपके साहित्यिक खाते में प्रकाशित पुस्तकों में ‘पंछी आकाश के’, ‘रवि की छवि’ व ‘चंद्रमुखी’ (कविता संग्रह) है। सम्मान में रेलवे मालदा मंडल से राजभाषा से २ सम्मान, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ (२०१८) से ‘कवि शिरोमणि’, २०१९ में विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ प्रादेशिक शाखा मुंबई से ‘साहित्य रत्न’, २०२० में अंतर्राष्ट्रीय तथागत सृजन सम्मान सहित हिंदी भाषा साहित्य परिषद खगड़िया कैलाश झा किंकर स्मृति सम्मान, तुलसी साहित्य अकादमी (भोपाल) से तुलसी सम्मान, २०२१ में गोरक्ष शक्तिधाम सेवार्थ फाउंडेशन (उज्जैन) से ‘काव्य भूषण’ आदि सम्मान मिले हैं। उपलब्धि देखें तो चित्रकारी करते हैं। आप विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ केंद्रीय कार्यकारिणी समिति के सदस्य होने के साथ ही तुलसी साहित्य अकादमी के जिलाध्यक्ष एवं कई साहित्यिक मंच से सक्रियता से जुड़े हुए हैं।