कुल पृष्ठ दर्शन : 225

You are currently viewing जो आज घटित, वही कल का इतिहास और भविष्य भी

जो आज घटित, वही कल का इतिहास और भविष्य भी

शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
*************************************

कहते हैं कि यदि शीर्षक प्रिय हो तो रचना का मुकुट बन जाता है, वह रचना के सारे रस को अपने में समेट मणि-सी चमक से अपनी ओर खींच लेता है। ‘मन का मौसम’ रचनाकारों की अलग-अलग पैनी दृष्टि से गुज़रते हुए रीतिकालीन कवि विद्यापति की बिहारी की सतसई बन श्रृंगाकिक रस का आवाहन करने में भला क्यों चूकेगा ?, जब रचनाकार के आस-पास मंद-मंद पवन मंदाकिनी नदी की लहरों के साथ हौले-हौले बह रही हो। रंग-बिरंगे फूलों से भरी वादियाँ कोयल की मधुर चितवन की ध्वनि से अनायास ही खिंची चली जा रही हों। गगनचुंबी पर्वत कोहरे व काले-काले घन को चकमा देने का प्रयास कर रहे हों। दूर-दूर तक फैली अनगिनत वृक्षों-वनस्पतियों से ढकी धरती अपने मनमोहक श्रृंगार से मन के मौसम को हर रही हो और मन कहने लगे यही है पृथ्वी का स्वर्ग।वादियों की मनचली चेतना से यकायक एक टीस नासूर-सी उभर आई…मन चिंतन में डूब कहने लगा, ‘कब आए होंगे क्रूर शासक ? इस भूमि के एक छोर पर बसे ऊँचे-ऊँचे पर्वतों के बीच बसी बस्तियों में ? कितने निर्दयी रहे होंगे वे बादशाह व राजा, जिन्होंने अपनी निर्दयता से न जाने कितने लोगों के सिर धड़ से अलग कर नरसंहार किए होंगे ? इतिहास में उल्लेख मिलता है विक्रम संवत् ६६३-७०३ तक उत्तर भारत को द्वितीय हर्षवर्द्धन ने एक सूत्र में पिरो रखा था। कुरु-पाँचालदेश, श्रावस्ती काशी, वैशाली-मगध, बेग देश का दक्षिणी भाग और उड़ीसा तक फैला था द्वितीय हर्षवर्द्धन साम्राज्य। नेपाल, असम, मथुरा, जयपुर, उज्जैन, बुंदेलखंड और उत्तरापथ के कुछ राज्य स्वतंत्र राज्य थे। द्वितीय हर्षवर्द्धन के शासनकाल का अंत होने के पश्चात वर्मन वंशों ने अल्पकाल तक शासन किया, जिन्हें विक्रम संवत् ७८४ में कश्मीर के राजा ललितादित्य मुक्तपीड़ ने परास्त भी किया था। तत्पश्चात इसके साथ-साथ आरंभ हो गया छोटे-छोटे राज्यों में विभाजन, जो कदाचित इससे पहले आर्यावर्त भारत की भूमि का इतने खंडित मानचित्र में न था।
दिल्ली में चौहान वंशजों, महोबा में चंदेल, मालवा में परमार और मारवाड़ परिहार वंशजों की सत्ता थी। गुर्जर देश में चालुक्य, मान्यखेट में राठौड़, देवगिरी में यादव, बारंगल में काकटीय, आँध्र में पल्लव, उत्तर मैसूर में होयसाल, चेन्नई में चोल, मदुरा में पांड्य, त्रिपुरा में कलचुरी, बिहार और पश्चिमी बंगाल में पाल, पूर्वी बंगाल में सेन और कश्मीर में उत्पल-वंशी राजाओं का राज्य था।
इतिहासकारों के अनुसार शती के प्रथम ३ दशकों का इतिहास उपलब्ध नहीं है, लेकिन इनमें संस्कृत आचार्यों द्वारा संस्कृत वाडमय अपने नूतन-सृजन की ओर उन्मुख था। तत्पश्चात इतिहासकारों के अनुसार देश की पश्चिमोत्तर सीमाएँ विदेशियों के निरन्तर आक्रमण से त्रस्त होनी आरंभ हो चुकी थीं। सिंध पर फ़ारस के बादशाह सुखप्रद नौशेरवां द्वारा प्रथम मुस्लिम आक्रमण किया गया था, जिसकी मृत्यु का समय विक्रम संवत् ५३६ है। यानि सन् ४७९ ईस्वी। नौशेरवां ने अपने आख़िरी दिनों में सिंध पर आक्रमण कर रायवंशी राजा सिंहरस द्वितीय का वध कर परास्त कर दिया।
इतिहास के पृष्ठों में इसके आगे के आक्रमणों का प्रमाण भी हैं। आज़ादी के ७५वें अमृत महोत्सव में नौशेरवां के प्रथम मुस्लिम आक्रमण के बारे में जानकारी प्राप्त कर मन का मौसम क्षुब्ध हो गया, और चेतना को जागृत कर कहने लगा,-समय की उड़ान कितनी तेज़ी से परिवर्तन हो चुकी है। ये ऐतिहासिक घटनाएँ हृदय में शूल-सी चुभन देती हैं, लेकिन त्वरित ही कह देती हैं विज्ञान के इस समय में इतिहासकार घटनाओं-सा ही सब क्षणिक है। जो आज घटित हो रहा है, वही कल का इतिहास है और वही कल का भविष्य भी। वादियों में बिन आहट का पसरा सन्नाटा न जाने क्यों वही इतिहास दोहराने की मनमानी करता रहता है ? अपनी-अपनी भूमि विस्तार के लिए या अपनी-अपनी भूमिरक्षा के लिए चैतन्य शुद्ध कब होगा ? कुछ नहीं कहा जा सकता। यह सोच मन के ऊपर फैला आवरण धुँध में खो गया और नई डगर के गीत संजोने लगा।
oooooo

Leave a Reply