भोपाल (मप्र)।
तथ्य कथ्य और पथ्य की त्रिवेणी से मिलकर बनती है एक श्रेष्ठ लघुकथा। तथ्य यानि जो घटना लेखक को सबसे पहले प्रभावित करे। इसके पश्चात् कथ्य जो लेखक लघुकथा को लिखे और पथ्य जो पाठकों को ग्राहय हो उनतक पहुंचे।
यह उदगार वरिष्ठ साहित्यकार और समीक्षक प्रो. मिथलेश अवस्थी (नागपुर) ने लघुकथा शोध केंद्र समिति (भोपाल) द्वारा आयोजित आभासी लघुकथा गोष्ठी में लघुकथाकार भारती पाराशर (जबलपुर) के लघुकथा पाठ में मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए।
आयोजन में भारती पाराशर ने विविध विषयों पर लघुकथाओं का वाचन किया। इन पर वरिष्ठ साहित्यकार-समीक्षक डॉ. मौसमी परिहार ने इन्हें अपने आसपास समाज की बिखरी हुईं लघुकथाएं बताते हुए बुनावट, कसावट, लिखावट सहित शीर्षक से लेकर कथ्य और शिल्प पर अपनी बात विस्तार से रखी।
संचालन शोध केंद्र के सचिव घनश्याम मैथिल अमृत ने किया। केंद्र की निदेशक कांता रॉय ने भी इस अवसर पर अपनी बात रखी। लघुकथाओं पर अनिता रश्मि, डॉ. दिलीप बच्चानी, डॉ. गीता गुप्ता एवं विनोद कुमार जैन ने भी समीक्षात्मक टिप्पणी की। लेखक भारती पाराशर ने सभी का आभार प्रकट किया।