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तन्त्र-मन्त्र

डॉ.मधु आंधीवाल
अलीगढ़(उत्तर प्रदेश)
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आज लाइब्रेरी से लौटने में शोभित को कुछ अधिक ही देर हो गई। सारे दोस्त रास्ते से ही अलग-अलग हो जाते थे। यूनिवर्सिटी से घर आने में बीच में काफी सुनसान रास्ता पड़ता था। बारिश का मौसम था,जैसे ही सब दोस्तों को छोड़ कर आगे बढ़ा,एक दम से बिजली कड़कड़ाने लगी और तेज बारिश शुरू हो गई। गहन अन्धेरा पहले से था। शोभित तेज साइकिल चला रहा था,पर कुछ दूर चलने के बाद उसे लगा कि शायद वह रास्ता भूल गया। उसे कहीं भी रुकने की जगह नहीं दिख रही थी। कुछ दूर पर उसे एक पेड़ की आकृति दिखाई दी। वह उसी ओर चलने लगा। वह पेड़ के नीचे अपने को बारिश से बचा रहा था। तेज बारिश के साथ-साथ तेज हवा भी चल रही थी। तेज हवा से लग रहा था जैसे पेड ही टूट कर गिर जाएगा।
कुछ दूर उसे हल्की-सी रोशनी दिखाई दी। उसने सोचा शायद वहाँ किसी का निवास है। वह उस ओर चल दिया। जैसे ही मकान के पास पहुँचा, अचानक एक स्त्री उसके पास आ गई और बोली- ‘आओ शोभित,गुरु जी तुम्हारा ही इन्तजार कर रहे हैं।’
वह चौंका और बोला-‘कौन हो तुम मेरा नाम कैसे जानती हो।’
वह खनकती आवाज में बोली,-‘मेरा नाम भैरवी है।अन्दर चलो,मेरे गुरु को आहुति देने में विलम्ब हो रहा है।’
शोभित सम्मोहित अवस्था में अन्दर पहुँचता है। भीतर जाकर देखता है कि,एक डरावना-सा तांत्रिक, जिसके चारों ओर नर मुंड पड़े हैं और एक हवन कुण्ड में अग्नि की लपटें उठ रही हैं। तांत्रिक के हाथ में नर मुण्ड है और उसमें से रक्त हवन कुंड में गिर रहा है। शोभित बहुत भयभीत हो गया। वह भागने की कोशिश करता है,पर भाग नहीं पा रहा है। वह जोर-जोर से हनुमान चालीसा पढ़ने लगता है। बस उसे उस तांत्रिक भैरवी के चीखने की आवाज सुनाई देती है । तन्त्रिक भैरवी से कहता है- ‘पकड़ो भागने ना पाए।’
वह दौड़ता ही चला जाता है। उसे सुबह होश आता है तो देखता है कि लाइब्रेरी का चपरासी रामदीन उसके पास खड़ा है और पूछ रहा है-‘शोभित भैया रात में अच्छा था हम बारिश के कारण घर नहीं गए। आप भागते ही रहे,लौट कर कहां से आए और साइकिल कहां है ?’
शोभित अपने को थोड़ा संभालता है और कहता है,-‘काका हम कल रास्ता भटक गए।’
रामदीन अचानक बोला-‘क्या…?’
‘हाँ,हम भैरवी के पास पहुँच गए।
‘अरे भैया भैरवी और उसका गुरु दोनों भागे हुए मुजरिम हैं जो लूटपाट करते हैं। बबुआ बहुत बचे हो। कोई तन्त्र-मन्त्र नहीं जानते वह।’

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