कुल पृष्ठ दर्शन : 276

You are currently viewing तरस रहा हूँ

तरस रहा हूँ

ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
***************************************

मैं अपनों को तरस रहा हूँ,
बिन बादल बरस रहा हूँ।

अंधेरे में गुज़ार दी जिंदगी,
अब धीरे-धीरे समझ रहा हूँ।

अपाहिज-सा हो गया हूँ,
विरह अग्नि में दहक रहा हूँ।

कैसे लड़ मरूं किस्मत से,
मैं स्वभाव से नरम रहा हूँ।

बदल गई है निगाहें उनकी,
मैं खामखां मचल रहा हूँ।

बंद हो गये किस्मत के ताले,
दर-दर अब मैं भटक रहा हूँ॥

परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।

Leave a Reply