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तुम भी हिंदी बन जाओ न

उमेशचन्द यादव
बलिया (उत्तरप्रदेश) 
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अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस विशेष….

हिंदी हूँ मैं! मीठी मधुर भाषा,तुम भी मुझे अपनाओ न,
क्यों पड़ते धर्म के चक्कर में,तुम भी हिंदी बन जाओ न…।

जन-जन की तो आधार हूँ मैं,मानवता की कर्णधार हूँ मैं,
भूल कर भी मुझसे दूर जाओ ना,तुम भी हिंदी बन जाओ न…।

हीनता का दमन मैं करती हूँ,ना कभी किसी से डरती हूँ,
साथ आकर मेरा हौंसला बढ़ाओ न,तुम भी हिंदी बन जाओ न…।

बस एक यही है आश मेरी,राष्ट्रभाषा भारत की बन जाऊँ,
जो दूर भागते हैं मुझसे,उन सबके मन को भी मैं भाऊँ।

बन गीत,ग़ज़ल दु:ख हर लूँगी,तुम दुखड़े हमें सुनाओ न,
क्यों भागते हो फैशन के पीछे,तुम भी हिंदी बन जाओ न…।

चाहे हो उर्दू,अंग्रेजी,तमिल,तेलुगु,गुजराती,पंजाबी,
हो हरियाणवी,घुल-मिल सब मुझमें मिल जातीं।

चाहे तुम पढ़ लो वेद पुराण,चाहे बाइबिल या पढ़ो कुरआन,
परोपकार धर्म अपनाओ न,तुम भी हिंदी बन जाओ न…।

इसी बात को सोच-सोच कर,पूरी रात मैं सोई नहीं,
इतने महान इस भारत वर्ष की,राष्ट्रभाषा भी कोई नहीं।

पटेल-अटल ने चाहा मुझको,’उमेश’ की रचना पढ़ जाओ न,
सबकी हरदम बन जाती मैं,तुम भी हिंदी बन जाओ न…॥

परिचय–उमेशचन्द यादव की जन्मतिथि २ अगस्त १९८५ और जन्म स्थान चकरा कोल्हुवाँ(वीरपुरा)जिला बलिया है। उत्तर प्रदेश राज्य के निवासी श्री यादव की शैक्षिक योग्यता एम.ए. एवं बी.एड. है। आपका कार्यक्षेत्र-शिक्षण है। आप कविता,लेख एवं कहानी लेखन करते हैं। लेखन का उद्देश्य-सामाजिक जागरूकता फैलाना,हिंदी भाषा का विकास और प्रचार-प्रसार करना है।

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