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तुम ही पावन…

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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रचना शिल्प: प्रति चरण १६ मात्रा-२ २ २ २ २ २ २ २….

तुम ही पावन, मन भावन हो,
जीवन का तुम ही उपवन हो।
तुमसे ही जीवन में सुख हैं,
हर सुख का तुम ही मधुवन हो॥
तुम ही पावन…

पलभर भी जब तुम नहिं दिखती,
बेचैनी तब मन में रहती।
साँसें थमतीं, आहें बनतीं,
एक अगन सी मन में जलती।
बारिश-सी शीतलता लाओ,
मेरे मन की अगन बुझाओ॥
तुम ही पावन…

तुम सुन्दरता का दर्पण हो,
तुम ही शीतल चन्द्रकिरण हो।
मैं अंधियारा, तुम उजियारा,
रौशन करती चन्द्रकिरण हो।
तुम बिन कैसे, बीते जीवन,
तुम साँसें, तुम ही धड़कन हो॥
तुम ही पावन…

आस रहे तुमसे ही प्रभु-सी,
देखूँ मैं छवि तुममें प्रभु की।
मैं तर जाऊं पुण्य कमाऊं,
दाता की यह देन सजाऊँ।
भव सागर के पार लगा दो,
प्रभु मेरी पतवार सजा दो॥
तुम ही पावन…

परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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