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अपनी आस्था के बचाव में चोट पहुंचाना बुद्धिमानी नहीं

अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश) 

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पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ टीवी बहस में आपत्तिजनक टिप्पणी करने के आरोप में भाजपा ने अपनी राष्ट्रीय प्रवक्ता को निलंबित करने और ‍दल की दिल्ली इकाई के प्रवक्ता को दल से निकालने की जो कार्रवाई की, वो एक हफ्ते पहले ही हो जानी चाहिए थी, क्योंकि किसी को भी किसी भी धर्म के खिलाफ आपत्तिजनक या बेअदबी करने वाली टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है। शिवलिंग को लेकर नहीं तो पैगंबर मोहम्मद को लेकर भी नहीं। अगर कार्रवाई तत्काल हो गई होती और दल ने उनके बयानों से खुद को अलग कर लिया होता तो न कानपुर के दंगे होते और न ही खाड़ी देशों सहित ( जिनके साथ भारत के अच्छे रिश्ते रहे हैं) तमाम इस्लामिक देशों की आलोचना का सामना नहीं करना पड़ता। देर से ही सही, भारत सरकार ने समझदारी दिखाते हुए साफ किया कि इस देश में किसी को किसी भी धर्म की बेअदबी का अधिकार नहीं है। ‘अराजक तत्वों’ के बयान भारत सरकार का पक्ष नहीं है।
भाजपा ने बयान जारी कर कहा कि भारत के हज़ारों साल के इतिहास में कई धर्म फले-फूले हैं। भारतीय जनता पार्टी हर धर्म का सम्मान करती है। भारतीय संविधान नागरिकों को किसी भी धर्म के पालन की आज़ादी देता है। साथ ही यह सभी धर्मों के आदर और सम्मान का भी अधिकार देता है। प्रवक्ता नूपुर शर्मा के विवादित बयान से तमाम मुसलमानों में रोष फैलने लगा। हालांकि इसकी प्रतिक्रिया में कानपुर की हिंसा प्रायोजित थी और नूपुर की टिप्पणियों के खिलाफ मुसलमानों की नाराजगी का संदेश देने की अवांछित कोशिश थी। जल्द ही ये नूपुर प्रकरण पूरी दुनिया में फैल गया और मुस्लिम देशों में इसके खिलाफ आवाज उठने लगी। उधर नूपुर पर भाजपा की कार्रवाई से भड़के पार्टी के वरिष्ठ नेता और सांसद सुब्रमण्यन स्वामी ने इसे कतर जैसे छोटे से देश के आगे भारत का ‘समर्पण’ बताया। कट्टर हिंदुत्ववादी और भाजपा राज में अपनी उपेक्षा के ‍शिकार स्वामी मोदी के घोर आलोचक रहे हैं। इसलिए उनकी बातों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती। कुछ स्वामी समर्थकों का यह सवाल है कि नूपुर ने गलत क्या कहा ? इस बीच नूपुर ने भी माफीनामा जारी कर कहा कि मैं बार-बार अपने आराध्यल महादेव शिवजी के अपमान को बर्दाश्त नहीं कर पाई और रोष में आकर कुछ चीजें कह दीं। अगर मेरे शब्दों से किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुंची हो तो मैं अपने शब्द वापस लेती हूँ। मेरी मंशा किसी को कष्ट पहुंचाने की कभी नहीं थी। यह माफीनामा भी बहुत देर से आया, तब तक खेल बिगड़ने लगा था।
मोदी सरकार और भाजपा तब जागे, जब नूपुर प्रकरण की आंच सीधे मोदी सरकार पर आने लगी और अरब देशों से नूपुर के बयान पर विरोध के स्वर उठने लगे। भारत और कतर के बीच दोहरे कराधान को रोकने के लिए द्विपक्षीय समझौता जल्द होने वाला है। कतर की कुल आबादी करीब २८ लाख है, जिनमें से लगभग ७ लाख भारतीय हैं। नूपुर के बयान के बाद कतर में ‘बहिष्कार भारत’ अभियान शुरू हो गया है। कई अरब देश भारत को कच्चा तेल देते हैं। हमारा २६ फीसदी व्यापार खाड़ी देशों के साथ है। कतर, यूएई के शेख और ईरान सरकार ने नूपुर के बयान को लेकर भारतीय राजदूत को तलब किया। खाड़ी के एक और देश ओमान सहित बयान का विरोध करने वालों में अब इंडोनेशिया और जाॅर्डन भी शामिल हो गए हैं। सऊदी अरब ने भी बयान जारी कर कड़ी आपत्ति जताई। यहां तक कि हमारे पड़ोसी मालदीव में भी विरोधी दलों ने नूपुर के बयान की निंदा का प्रस्ताव देश की संसद में पारित कराने की असफल कोशिश की। हालांकि वहां की सरकार ने इस मामले में समझदारी भरी चुप्पी साध ली है, क्योंकि वो भारत से अपने रिश्ते खराब नहीं करना चाहती। इस बीच ५७ इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी ने भी बयान को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। हालांकि मोदी सरकार ने उसे यह कहकर खारिज कर दिया कि यह हमारा आंतरिक मसला है। उधर प्रवक्ताओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई पर कतर और सउदी अरब ने संतोष व्यक्त किया है।
नूपुर के बयान पर राजनीति भी खूब हो रही है। टिप्पणी के दूसरे दिन ही नूपुर शर्मा के खिलाफ मुंबई के थाने में मामला दर्ज किया गया है। गिरफ्तारी की मांग भी शुरू हो गई है। नूपुर को जान से मारने की धमकियां भी मिल रही हैं। हालांकि नूपुर को दल ने ‘आगे की जांच’ पूरी होने तक के लिए निलंबित किया है। हो सकता है मामला ‘ठंडा’ होने पर वापसी हो जाए, क्योंकि संघ से जुड़ा एक वर्ग नूपुर के खिलाफ कार्रवाई को ‘अनावश्यक’ मान रहा है। यह तर्क भी दिया जा रहा है कि पवित्र शिवलिंग को लेकर कुछ गैर हिंदुओं ने जैसी टिप्पणियां की हैं, अगर हिंदू भी उन पर वैसे ही प्रतिक्रिया होने लगे, जैसे मुसलमानों से हो रही है तो फिर क्या होगा ? लेकिन ऐसी प्रतिक्रिया देने वाले यह भूल गए कि देश में उन्हीं की विचारधारा की सरकार है, जिसके संवैधानिक दायित्व और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता भी हैं। वैसे, नूपुर के खिलाफ कार्रवाई को कुछ लोग संघ प्रमुख मोहन भागवत के उस बयान की रोशनी में भी देख रहे हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों देखना ? इसका भावार्थ यही था कि गड़े मुर्दे उखाड़ने से कोई फायदा नहीं। मुसलमानों की पूजा पद्धति भले अलग हो, लेकिन वो हमारे भाई हैं। समझा जाता है ‍कि संघ प्रमुख के इस बयान के बाद ही नूपुर पर कार्रवाई का दबाव बढ़ने लगा।कुछ घंटे बाद ही कार्रवाई हो गई। यही काम नूपुर के बयान के २ दिन बाद हुआ होता तो बेवजह के विवादों से बचा सकता था।
वैसे आजकल जिस तरह की बहस टीवी चैनलों पर होती है और जिस तरह उनमें जानबूझ कर इतना उकसाया जाता है कि वो कुछ ऐसा बोल दें कि जिस पर जमकर बवाल हो और टीआरपी बढ़े। टीआरपी कितनी बढ़ी पता नहीं, लेकिन देश की साख की टीआरपी पर बेवजह बट्टा जरूर लगा। नुपूर शर्मा ने जो कहा उसका मतलब और परिणाम वो नहीं समझती होंगी, यह सोचना भोलापन ही होगा। नूपुर पिछले विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के‍ खिलाफ भाजपा के टिकट पर लड़ी थीं और हारी थीं। नूपुर तेजतर्रार प्रवक्ता हैं और काफी पढ़ी-लिखी हैं। छात्र जीवन से ही राजनीति में हैं। ऐसे में बहुत संभल कर बात रखनी चाहिए थी। अपनी आस्था के बचाव में दूसरे की आस्था पर चोट पहुंचाना बुद्धिमानी नहीं है, न ही ऐसा करना जरूरी है, खासकर तब कि जब पूरी दुनिया ही अनुदारता के दौर से गुजर रही है। भारत सऊदी अरब की तरह कट्टर धार्मिक और फ्रांस की तरह कट्टर धर्म निरपेक्ष नहीं हो सकता। हमें अपनी सीमाएं और भाजपा को सत्तारूढ़ दल होने के नाते अंतरराष्ट्रीय रिश्तों की नजाकत को समझना होगा। आज भारत दुनिया में स्वतंत्र विदेश नीति अपनाकर तलवार की धार पर चलने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में कोई भी असावधानी भरा या मूर्खतापूर्ण बयान भारत की अंतरराष्ट्रीय हैसियत को डगमगा सकता है।

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