दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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ऐ लेखनी, तू ही बता मैं क्या लिखूं ?
तुझसे लिखूं मैं या तुझ पर लिखूं!
प्रेम में डूबी कोई भी कहानी लिखूं,
आँसू में डूबी दर्द की दास्तां लिखूं।
ऐ लेखनी…
मॉं का प्यार, दुलार, पुचकार लिखूं,
भाई-बहन का निश्छल प्यार लिखूं
या सजनी का समर्पण, प्यार लिखूं,
या कि अपनों का व्यवहार लिखूं।
ऐ लेखनी…
प्रेमिका की मनभावन मनुहार लिखूं,
या कि विरह विरहिन का मैं दर्द लिखूं
छली गई एक मासूम की व्यथा लिखूं,
तुम्हीं कहो लेखनी, आज क्या लिखूं।
ऐ लेखनी…
दुनिया में हो रहे सब अत्याचार लिखूं,
हत्या, चोरी, डकैती व बलात्कार लिखूं
दहेज में जली दुल्हन की आग लिखूं,
या बूढ़े मॉं-बाप की त्याग-कथा लिखूं।
ऐ लेखनी…
काले कोटवालों के काले कारनामे लिखूं,
या सफेद कुर्तेवालों की करतूत लिखूं
धर्म की आड़ में हिंसक वारदात लिखूं,
साहित्य के नाम होते शोषण को लिखूं।
ऐ लेखनी…
वीर शहीदों की अमर कहानी लिखूं,
सीमा पे सीना ताने सैनिक को लिखूं
किसानों की बदहाली कहानी लिखूं,
देश में फैली अराजकता बात लिखूं।
तू चुप क्यों है, कुछ न कुछ तो बोलो,
तेरे दिल में राज क्या है उसे खोलो
तू चुप रहेगी तो सृष्टि चुप हो जाएगी,
थम जाए हर कर्म जब तू नहीं चलेगी।
तेरा चलना जरूरी,है लिखना जरूरी,
तेरे साथ तो सच्चाई है, नहीं मजबूरी
तू चाहे तो आग लगा दे, शांति करा दे,
जो जो चाहे तू वो वो सब-कुछ कर दे।
समय साथ तेरा भी रूप बदलता है,
पैसा तेरे आगे भारी पड़ पड़ जाता है।
पर तुम कभी भी बिकना नहीं कलम,
हम कवि साथ हैं तेरे सदा औ हरदम॥
परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।