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दहेज फिर क्यों साथ में !

गुरुदीन वर्मा ‘आज़ाद’
बारां (राजस्थान)
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कलेजे का टुकड़ा,तुम्हें दे दिया है,
अब यह दहेज फिर,किस बात में
कतरा लहू का,तुम्हें दे दिया है,
अब यह दहेज फिर,क्यों साथ में।

अपने लहू से,यह सींचा है फूल,
संजोकर अरमान,दिल में बहुत
किसी की नजर,नहीं लग जाये,
पाला है संभालकर,इसको बहुत।
फूल अपने चमन का,तुम्हें दे दिया है,
अब यह दहेज फिर,किस शान में।
कलेजे का टुकड़ा…

इन्हें दे दो तुम भी,कलेजे का टुकड़ा,
अपने लहू का कतरा,इनकी तरहां
तुम भी सौंप दो,अपने अरमान इनको,
चमन का फूल इनको,इनकी तरहां।
इज्ज़त अपने घर की,तुम्हें दे दी है,
अब यह दहेज फिर,किस सम्मान में।
कलेजे का टुकड़ा…

बहुयें ससुराल में,मार दी जाती है,
दहेज इतना,देने के बाद भी क्यों
बनाओ स्वावलम्बी,तुम बेटियों को,
तब दहेज पर मौतें,होगी ही क्यों।
कर दिया कन्यादान,एक पिता ने तुमको,
अब यह दहेज फिर,किस अहसान में।
कलेजे का टुकड़ा…॥

परिचय- गुरुदीन वर्मा का उपनाम जी आज़ाद है। सरकारी शिक्षक श्री वर्मा राजस्थान के सिरोही जिले में पिण्डवाड़ा स्थित विद्यालय में पदस्थ हैं। स्थाई पता जिला-बारां (राजस्थान) है। आपकी शिक्षा स्नातक(बीए)व प्रशिक्षण (एसटीसी) है।इनकी रूचि शिक्षण,लेखन,संगीत व भ्रमण में है। साहित्यिक गतिविधि में सक्रिय जी आजाद अनेक साहित्य पटल पर ऑनलाइन काव्य पाठ कर चुके हैं तो अनेक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्रकाशित पुस्तक ‘मेरी मुहब्बत’ साहित्य खाते में है तो कुछ पुस्तक प्रकाशन में हैं।

 

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