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खूब लिखो

शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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लिखो,लिखो खूब लिखो,
हाथों से लिखो
लेकिन मस्तिष्क से सोचो मत,
विचार प्रवाह है
निस्सरित होता जाएगा शब्दों में,
आखिर बिना कुछ दिए
निरुत्तर हुए,
लिखो,लिखो,खूब लिखो कह जाएगा।

लिखो,लिखो खूब लिखो,
हाथों से नहीं
अब चेहरों की पहचान में लिखो,
लेकिन उनमें कोई रंग मत देखो
ये ऋतुएँ हैं,रंग बदल लेती हैं।
रूख जिधर का हो,वहीं चल देती हैं।
लिखो,लिखो खूब लिखो,डर मत लिखो॥

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