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दानवीर दया के सागर रहे `विद्यासागर`

गोपाल चन्द्र मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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इंसान के हृदय में त्याग का उदय तब होता है,जब दया का स्रोत अप्रतिहत प्रवाहित होने लगता है। स्वयं का सर्वस्य त्याग करते हुए पीड़ित मनुष्यों का उपकार करने के लिए मन सदा अनुप्रेरित होने लगता है,उसके लिए ऋण ही क्यों न करना पड़े,पीड़ितों की सेवा करनी ही होगी,वैसी ही भावना सदा उत्साहित करने लगता है,जिसका जीता-जागता उदाहरण देखने को मिलता है पण्डित ईश्वर चंद्र बन्दोपाध्याय विद्यासागर की जीवनी के अध्ययन सेl उनके हृदय में सदा जाग्रत पीड़ितों के लिए सेवार्थ दयापूर्ण मानसिकता रही,जैसे एक सन्तान स्नेहमयी माँ के करुणामय स्पर्श से होती है,जिसको स्वयं माइकेल मधुसूदन दत्त ने प्रत्यक्ष अनुभव किया था।
इतिहास के मतानुसार सम्पूर्ण भारत तथा बंगाल के इतिहास में १८वीं से १९वीं सदी एक गौरवपूर्ण स्मरणीय समय व पुनर्जागरण का समय रहाl यह अधिकांश महापुरुषों का आविर्भाव का समय रहा। तत्कालीन समाज में प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा प्रचलित कुप्रथा तथा कुरीतियों के विरुद्ध न्यायपूर्ण सिद्धांतों को प्रतिष्ठित करने के लिए विप्लवपूर्ण समय रहा। उस सम-सामयिक समय में भारतवर्ष में जितने भी महान कर्मवीर,निर्भीक,उदार,मानव समाज संस्कारकों का आविर्भाव हुआ था,उन्हीं में से एक अन्यतम व्यक्तित्व रहे पण्डित ईश्वर चंद्र विद्यासागर। आपने अंतर्मन से मानविक अधिकारों एवं इंसानों के मूल्य का अनुभव किया थाl इसलिए,उन्होंने सामाजिक कुरीतियों तथा कुप्रथा से ग्रसित होने के कारण से समाज में अपमानित को सम्मान पूर्वक जीने तथा समाज में सभी को शिक्षा के अधिकार खासकर नारियों को दिलाने के लिए आंदोलन व संघर्ष करते हुए समाज में सभी को सम्मान पूर्वक जीने तथा नारी-पुरुष सभी को निर्विरोध शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार दिलाया। अथक प्रयास करते हुए आपने शिक्षा की ज्योति को शहर से दूर दुरंत ग्राम व कस्बों तक प्रसारित किया थाl
तत्कालीन समाज में बाल्य विवाह का एवं कुलीन प्रथा प्रचलित थी,जिस निष्ठुर प्रथा से ग्रसित हुआ करते थे नादान,अप्राप्त वयस्क कन्यागण। असमय वैधव्य के विषम कष्ट को पण्डित ईश्वर चंद्र अपने करुण हृदय से अनुभव करते रहेl इस बाल्य विवाह एवं ततजनित नाबालिग कन्याओं के अकाल में पतिहीन होकर विधवा के जीवन को भोग करने,बाध्य करने एवं मृत पति के गृह में कलंकित दासी जैसे अपमानित जीवन बिताने के लिए बाध्य करने,नहीं तो पित्रालय में बोझ बनकर अकारण कलंक की स्याही की मुहर चेहरे पर लगाकर हतभागी,डायन आदि नाम से नए नामकरण के साथ गृह में पालित कुत्ता-बिल्ली जैसे या उससे भी निम्न मान के जीवन जीने के लिए बाध्य किया जाना भी आपने अनुभव कियाl आश्रम निवासिनी, दासी,विनोदिनी या समाज के पुजारी या उच्च प्रभावशाली व्यक्तियों का मनोरंजन कर बारबनिता (वेश्या) के जीवन को अवलम्बन किये बिना ऐसी असहाय बालिकाओं के लिए और कोई राह खुली नहीं रहती थी। ऐसी ही कुरीतियों से परिपूर्ण सामाजिक व्यवस्था तथा मानवता के नाम से एक निष्ठुर परिहास चल रहा थाl पुरुष प्रधान या शासित समाज में स्त्री जातियों के लिए मानविक अपमान जारी था।
उस समय में यह एक भी प्रथा चालू रही या पुरुष शासकों द्वारा फरमान जारी रहा-नारियों के लिए शिक्षा के अधिकार नहीं है।
इस तरह की अमानवीय सामाजिक प्रथा या रीति-नीतियों को पण्डित ईश्वर चंद्र विद्यासागर बर्दाश्त नहीं कर पाए थे। पण्डित ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने इन प्रचलित कुरीतियों के विरुद्ध एवं स्त्री जाति के सम्मान की रक्षा सहित बाल विधवाओं को सामाजिक स्वीकृति प्रदान या ससम्मान सुखी जीवन बिताने के लिए प्रबल सामाजिक विरोध व ग्लानि को सहते हुए सशक्त विरोध चालू कियाl
आपने विधवा पुनर्विवाह नियम को चालू करने के लिए जनमत संग्रहित करते हुए ब्रिटिश सरकार में युक्ति तर्कों के साथ कानून पारित करने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया। ब्रिटिश सरकार ने भी पण्डित ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के आवेदन के पक्ष में विधवा विवाह को वैध करार देते हुए कानून पारित कर दिया।
आपने सर्वशिक्षा के प्रसार के साथ-साथ स्त्रियों को भी शिक्षा के अधिकार प्रदान किए। दया के सागर कोमल हृदय सम्पन्न विद्यासागर जी का मानना था कि किसी देश की उन्नति उस देश की नारियों के शिक्षित हुए बिना सम्भव नहीं है। उनकी मातृभक्ति के कारण स्त्री जातियों के प्रति श्रद्धाभाव का उदय रहा। विद्या के सागर,दया के सागर,समाज सुधारक,शिक्षा व नारी शिक्षा के प्रसारक,सरल गद्य के जनक,सरल आक्षरिक वर्ण के प्रवर्तक,समाचार पत्रों,पुस्तकादि,पाण्डुलिपियों के छपाई अक्षर में प्रकाशक,सरल व्याकरण आदि के लेखक,असामान्य विद्यान,उच्च पदाधिकारी होने के बावजूद अतिसाधारण निर्लोभ,निरहंकारी सरल जीवन यापनकारी तथा एक निर्भीक कर्मठ-कठोर परिश्रमी देशप्रेमी भी पण्डित ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी रहेl हम सभी को उनके विशाल कर्ममय जीवन से सीख लेनी चाहिए,तभी परम् मातृभक्त,समाज संस्कारक एवं दया के सागर ईश्वर चंद्र बंद्योपाध्याय के श्रीचरणों में सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित होगी।

परिचय-गोपाल चन्द्र मुखर्जी का बसेरा जिला -बिलासपुर (छत्तीसगढ़)में है। आपका जन्म २ जून १९५४ को कोलकाता में हुआ है। स्थाई रुप से छत्तीसगढ़ में ही निवासरत श्री मुखर्जी को बंगला,हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। पूर्णतः शिक्षित गोपाल जी का कार्यक्षेत्र-नागरिकों के हित में विभिन्न मुद्दों पर समाजसेवा है,जबकि सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत सामाजिक उन्नयन में सक्रियता हैं। लेखन विधा आलेख व कविता है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में साहित्य के क्षेत्र में ‘साहित्य श्री’ सम्मान,सेरा (श्रेष्ठ) साहित्यिक सम्मान,जातीय कवि परिषद(ढाका) से २ बार सेरा सम्मान प्राप्त हुआ है। इसके अलावा देश-विदेश की विभिन्न संस्थाओं से प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान और छग शासन से २०१६ में गणतंत्र दिवस पर उत्कृष्ट समाज सेवा मूलक कार्यों के लिए प्रशस्ति-पत्र एवं सम्मान मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और भविष्य की पीढ़ी को देश की उन विभूतियों से अवगत कराना है,जिन्होंने देश या समाज के लिए कीर्ति प्राप्त की है। मुंशी प्रेमचंद को पसंदीदा हिन्दी लेखक और उत्साह को ही प्रेरणापुंज मानने वाले श्री मुखर्जी के देश व हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा एक बेहद सहजबोध,सरल एवं सर्वजन प्रिय भाषा है। अंग्रेज शासन के पूर्व से ही बंगाल में भी हिंदी भाषा का आदर है। सम्पूर्ण देश में अधिक बोलने एवं समझने वाली भाषा हिंदी है, जिसे सम्मान और अधिक प्रचारित करना सबकी जिम्मेवारी है।” आपका जीवन लक्ष्य-सामाजिक उन्नयन है।

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