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दीपों का सांस्कृतिक पर्व

डाॅ. पूनम अरोरा
ऊधम सिंह नगर(उत्तराखण्ड)
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दीपावली पर्व स्पर्धा विशेष ……

दीपों का सांस्कृतिक पर्व दीपावली हमारे देश का सबसे उल्लासमय त्योहार है। यह त्योहार हमें परम आनन्द की अनुभूति कराता है व दैनिक कार्यों से हटकर उल्लास प्रदान करता है। सुख-समृद्धि,मंगल तथा आलोक का यह पर्व अंधकार पर प्रकाश का व अज्ञान पर ज्ञान की विजय का प्रतीक है। इस ज्योति पर्व की सार्थकता मिट्टी के दीए से ही है, जिसने हमें सदैव दिया ही दिया,सुख-समृद्धि,शौर्य, सद्बुद्धि एवं रोशनी।
जलता हुआ मिट्टी का दीया सदियों से निःस्वार्थ भाव से तिमिर की छाती चीरकर प्रकाश बिखेरने हेतु कृत संकल्पित है। दीपावली के दिन चहुँ ओर टिमटिमाते दीए देख ऐसा लगता है मानो मृत्युलोक पर व्याप्त भ्रष्टाचार,झूठ ,बेईमानी,स्वार्थ, अनैतिकता इत्यादि कुरीतियों रूपी अंधकार को मिटाने के लिए आसमां से असंख्य नक्षत्र धरा पर उतर आए हों। ज्योति पर्व केवल बाह्य अंधकार को मिटाने का ही नहीं,वरन् समस्त जनजाति के अंतस के अंधकार को भी दूर करने का संकल्प दिवस है। विविध जाति,धर्मों व भाषा भाषियों के देश भारत में इस महान ज्योति पर्व ने सदियों से देश की जनता के दिलों में ‘एकता के दीए’ जला रखे हैं। हम मानव समाज को समृद्धि के शिखर पर ले जाएं,इसकी भी साक्षी है दीपावली। प्रकाश पर्व हमें विवेक व सद्भावों की सीख देता है,अंधकार व निराशा से लड़ने की प्रेरणा देता है।
इस दीपावली पर हम संकल्प लें कि,जिस दीए ने हमेशा हमें दिया ही दिया,हम उस दीए के हृदय की विराटता को कुछ पंक्तियों के भावों से सार्थक करें…
मिलकर सभी मित्रों को,
साथ साथ मुस्कुराना है
ईर्ष्या-द्वेष को खत्म कर,
प्रेम का दीप जलाना है।

ज़िन्दगी की परीक्षा को,
धैर्य से आजमाना है
नम्रता रूपी फूलों से,
साँसों को महकाना है।

दीए की मद्धम लौ से,
मन प्राण नहलाना है
ज्ञान की रोशनी बिखेर,
ज्योति कलश छलकाना है।

अंतरात्मा की आवाज़ सुन,
समाज सेवा में संलग्न होना है
चतुर्दिक प्रकाश फैला कर,
आशाओं को जगमगाना है।

हिन्दू संस्कृति का आदर कर,
पर्व को कुत्सित होने से बचाना है
तेल भरे दीपों के प्रकाश से,
शांति और सौन्दर्य को बढ़ाना है।

विद्युत दीयों का बहिष्कार कर,
मिट्टी का दीया ही जलाना है।
घर के कोने-कोने को,
मिट्टी के खिलौनों से सजाना है॥

परिचय–उत्तराखण्ड के जिले ऊधम सिंह नगर में डॉ. पूनम अरोरा स्थाई रुप से बसी हुई हैं। इनका जन्म २२ अगस्त १९६७ को रुद्रपुर (ऊधम सिंह नगर) में हुआ है। शिक्षा- एम.ए.,एम.एड. एवं पीएच-डी.है। आप कार्यक्षेत्र में शिक्षिका हैं। इनकी लेखन विधा गद्य-पद्य(मुक्तक,संस्मरण,कहानी आदि)है। अभी तक शोध कार्य का प्रकाशन हुआ है। डॉ. अरोरा की दृष्टि में पसंदीदा हिन्दी लेखक-खुशवंत सिंह,अमृता प्रीतम एवं हरिवंश राय बच्चन हैं। पिता को ही प्रेरणापुंज मानने वाली डॉ. पूनम की विशेषज्ञता-शिक्षण व प्रशिक्षण में है। इनका जीवन लक्ष्य-षड दर्शन पर किए शोध कार्य में से वैशेषिक दर्शन,न्याय दर्शन आदि की पुस्तक प्रकाशित करवाकर पुस्तकालयों में रखवाना है,ताकि वो भावी शोधपरक विद्यार्थियों के शोध कार्य में मार्गदर्शक बन सकें। कहानी,संस्मरण आदि रचनाओं से साहित्यिक समृद्धि कर समाजसेवा करना भी है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-‘हिंदी भाषा हमारी राष्ट्र भाषा होने के साथ ही अभिव्यक्ति की सरल एवं सहज भाषा है,क्योंकि हिंदी भाषा की लिपि देवनागरी है। हिंदी एवं मातृ भाषा में भावों की अभिव्यक्ति में जो रस आता है, उसकी अनुभूति का अहसास बेहद सुखद होता है।

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