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देखो अपनी जमीं पर

गुरुदीन वर्मा ‘आज़ाद’
बारां (राजस्थान)
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देखो अपनी जमीं पर,क्या से क्या हो रहा है।
वक़्त बेवक़्त यहाँ पर,ऐसे बदल क्यों रहा है॥
गुल ही गुल है यहाँ जो,वह गुल में गुल हो रहा है, वह गुल में गुल हो रहा है।
देखो अपनी जमीं पर…॥

हर किसी में जोश है,जीने को यह जिंदगी,
ख्वाबों में इंसान है,करके ऐसे दिल्लगी।
बेखबर होकर हर कोई,दौड़ कहाँ रहा है,
दौड़ कहाँ रहा है।
देखो अपनी जमीं पर…॥

हारना अपनी बाजी,कोई नहीं यहाँ चाहता,
मुफलिसी में रहकर,मरना कोई नहीं चाहता।
बस इसी शान के लिए,जंग वह लड़ रहा है,
जंग वह लड़ रहा है।
देखो अपनी जमीं पर…॥

चाहता है हर कोई यहाँ,अपनी हुकूमत चलाना,
बनकै जी ‘आज़ाद’ पंछी,आसमां में वह उड़ना।
करने को रोशन घर अपना,वह आग से खेल रहा है,
वह आग से खेल रहा है।
देखो अपनी जमीं पर…॥

अफसोस नहीं है किसी को,बेचकर अपना ईमान,
लूट कर अपनों के घर ही,हँस रहा है देखो इंसान।
अपने वतन ,अपने चमन की, बर्बादी वह कर रहा है,
बर्बादी वह कर रहा है।
देखो अपनी जमीं पर…॥

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