डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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चीरहरण है चौराहों पर,
अस्मत लुटती दोराहों पर
घर में बूढ़ा बाप है बैठा,
बेटा भटक रहा राहों पर।
दु:ख को कैसे हर्ष बना लूँ,
कैसे मैं नववर्ष मना लूँ…॥
धूल फांकते निर्धन बच्चे,
कुंठा में हैं मन के सच्चे
मिले एक वक्त का खाना,
दूजे का है नहीं ठिकाना।
जमीं को कैसे अर्श बना लूँ,
कैसे मैं नववर्ष मना लूँ…॥
लूट रहे हैं सब ग़रीब को,
अपने धोखा दें करीब को
रिश्तों से है स्वार्थ टपकता,
अपनेपन से भय छलकता।
कैसे नर्क को स्वर्ग बना लूँ,
कैसे में नववर्ष मना लूँ…॥
दया-दान सब हवा हो गए,
धर्म-कर्म भी कहाँ खो गए
माथे पर है दुःख का सेहरा,
जीवन पर मृत्यु का पहरा।
शर्म को कैसे गर्व बना लूँ,
कैसे में नववर्ष मना लूँ…॥
परिचय– डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।