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धन्य है! आज की संतान

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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धन्य है!
आज की संतान,
जिन्हें माँ-बाप ने
अपने सुखों का,
बलिदान देकर
पढा-लिखा कर,
अपने पैरों पर
खड़ा किया।
जिन माँ-बाप ने,
उन्हें भाई-बहन
घर-परिवार दिया,
वही सन्तान
आज कहती है कि,-
उनके घर
आने-जाने से,
उनकी गृहस्थी
‘डिस्टर्ब’ होती है।
तुम्हें अपने बच्चे,
कितने प्यारे लगते हैं
तुम्हारे माँ-बाप ने भी,
तुम्हें इतने ही
प्यार-दुलार से,
पाला होगा।
आज माँ-बाप,
भाई-बहन से ज़्यादा
सास-ससुर,साले-साली,
प्यारे लगते हैं।
उनके ससुराल वाले,
उनके माँ-बाप को
अपमान भरे,
शब्द कह जाते हैं,
पर वो अपने,
माँ-बाप से कहते हैं
कि हमें तो,
अपने ससुराल वालों से
निभाना ही पड़ेगा।
माँ-बाप घर में,
भूखे बैठे हैं पर
उन्हें ससुराल में,
‘बर्थ-डे’ पार्टी मनानी है।
अरे! क्यों भूलते हो नादान ?
कल तुम भी,
उम्र के इस
पड़ाव पर पहुँचोगे।
कल जब,
तुम्हारी सन्तान
तुम्हारे साथ भी,
ऐसा व्यवहार करेगी।
तब एक बार हमें,
याद जरूर कर लेना॥

परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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