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द्वंद

डॉ.मधु आंधीवाल
अलीगढ़(उत्तर प्रदेश)
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मुझे क्यों लगता है ऐसा,
कि तुम मेरे पास खड़े हो
बाँहों को फैलाए एक,
मूक लफ्ज बोलते हुए-
आओ मेरी इन बाँहों में।
तुमको करूं मैं जी भर कर दुलार,
जिसके लिए तड़पते हो तुम
पर जब में देखती हूँ,
तो खाली होता है अटरिया का
वह कोना ना तुम होते हो,
और ना तुम्हारी परछाई।
ना जाने क्यों लगता है मुझे,
तुम चले जा रहे हो कहीं
दूर बहुत दूर मुझसे अलग।
एक तड़प और एक द्वंद,
मेरे लिए छोड़ कर…॥

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