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धन की लहरें…

एम.एल. नत्थानी
रायपुर(छत्तीसगढ़)
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स्वार्थ की बहती नदी में,
स्वहित निर्वाह करते हैं
जीवन मूल्यों को त्याग,
धन के प्रवाह में बहते हैं।

लाभों के अवसर तलाशें,
नित-नए जतन जुटाते हैं
संपन्नता की उतुंग लहरों,
पर सवार धन लुटाते हैं।

विषमता की खाई बढ़ती,
नैतिकता ही छोड़ देते हैं
लाभार्जन की लालसा में,
सत्कर्मों को मोड़ देते हैं।

‘सत्यमेव जयते’ को छोड़,
झूठे प्रपंचों की भरमार है।
सत्यनिष्ठा के अभावों से,
मानवता भी शर्मसार है॥

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