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दिल से ना करना जुदा

राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड) 
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सुन सुन सुन ऐ मेरे मालिक सुन,
मन में बज रही आज कैसी धुन
दिमाग कहता-चलो चलें अब आगे,
पर कहता मन छूट रहे प्रेम के धागे।

धागे प्रेम के हैं मेरे बहुत ही खास,
खास इसलिए कि यहीं मैं खड़ा हुआ
सब दोस्तों संग मस्ती में जुड़ा हुआ,
शिक्षकों को पकड़ कर बड़ा हुआ।

मेरे जीवन के अनमोल १२ साल,
और शिक्षकों की सुन्दर देखभाल
सहपाठियों के संग मस्ती कमाल,
क्या बताऊँ आज क्या है मेरा हाल।

कल से हमारा साथ छूट रहा है,
मेरा हौंसला आज ही टूट रहा है
गम आज टाले हर हाल टलता नहीं,
मन आज संभालें तो संभलता नहीं।

बस आज रो-रो कर लेता हूँ विदा,
पर करता हूँ विनती एक ही सदा।
तन से समीप हम रहें या ना रहें,
पर हमें दिल से ना करना जुदा॥

परिचय– साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैL जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैL भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैL साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैL आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैL सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंL लेखन विधा-कविता एवं लेख हैL इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैL पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंL विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।

 

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