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प्रभु के मार्ग

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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मेरा निजी व्यवसाय था,जिसके लिए अक्सर दूसरे शहरों में जाना पड़ता था। ज्यादातर निजी साधन (वाहन) से ही जाता था। २३ वर्ष पहले,उस दिन अम्बिकापुर जाने की चर्चा पत्नी से कर चुका था। अतः,पत्नी ने अगले दिन (१ अप्रैल १९९९) को यथावत कपड़े,टिफिन,वगैरह तैयार कर दिए। रात ९ बजे की ट्रेन थी। समयानुसार स्टेशन पहुंचा,टिकट कटाया,पर पता नहीं क्यों, सामने से गुजरती ट्रेन छोड़कर वापस घर आ गया। पत्नी ने पूछा,-आप तो अम्बिकापुर के लिए निकले थे। ट्रेन छूट गई क्या ?
अरे नहीं,पता नही क्यों,मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। टिकट लेकर सामने से गुजरती ट्रेन छोड़ दी। अब सोमवार को जाउंगा।
उस दिन गुरूवार था। अगले दिन शुक्रवार को सुबह ६ बजे ही मेरे साथी संजय का फोन आ गया-अरे चाहिल भाई,गेवरा कालरी में मेरा जनरेटर फेल हो गया है,आप जाकर देख लो। लेबर कल से बैठी है। हो सके तो चालू कर दो।
मेरे बहुत मना करने पर भी वो नहीं माना। मैंने तबियत खराब होना भी कहा,ट्रेन छोड़ने का किस्सा भी बताया,पर कहने लगा,-कहो तो खुद अपनी गाड़ी और ड्राइवर भेज देता हूँ।
तब मेरी खुदी शर्मिंदा हुई,और मैंने हामी भर दी। करीब साढ़े ८ बजे १ साथी को लेकर निकला,और २६ किलोमीटर बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गया। १ पैर,और १ हाथ गंवाया। पत्नी,घर वाले,और सब परिचित अक्सर कहते हैं कि,उस दिन अम्बिकापुर चला जाता तो शायद ये नहीं होता,पर मैं कहता हूँ कि क्या पता! इससे भी बड़ा कुछ हो जाता।
आज महसूस करता हूँ,कि यदि उस दिन अम्बिकापुर चला जाता,कोई हादसा नहीं भी होता, और शायद बड़ा व्यवसायी भी बन जाता,पर जो अभी बैठा लिख रहा हूँ,कहाँ लिख पाता। ये अवसर भी कहाँ मिलता! अतः हमें ये मानना चाहिए कि प्रभु ही प्रत्येक होनी के रचयिता हैं। ये तो मानव का स्वार्थी मन ही है जो समय के अनुसार निजी सुख के लिए उस होनी को ‘अनहोनी’ बना देता है। हर किसी के लिए वही समय सही होता है,जिसे वह अपने वर्तमान में जी रहा होता है।

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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