मदन गोपाल शाक्य ‘प्रकाश’
फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश)
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जयति जननी स्वरूपिणीं,
जय हे धरा धरणीं रूपिणी।
जगत रक्षिका जगदीश्वरी,
रत्नगर्भा,दाती-ए-भूमेश्वरी।
अन्नदायक हो जीव रक्षक,
साहक सर्वत्र जग संरक्षक।
जय अपारणीं जगत्तारिणीं,
जग आधारणीं भार धारणीं।
जन्नति प्राणियों के लिए जो,
उन्नति प्राणियों के लिए जो।
पालन करे है सृष्टि मात्र का,
खेल है अलौकिक सृष्टि का।
आदि जो है धरा कल्याणीं,
भार स्वरूपा जग धारणीं।
अपार आँचल है राजेश्वरी,
गोद में सबको लिए मातेश्वरी।
अन्न जल जो सबको है देती,
खुद सजे है हरियाली रहती।
अनंता अलौकिक अपारणीं,
करती है पालन भार धारणीं॥