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धीरज

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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कर सकते हैं काम बड़े जो खुद में हिम्मत रखते हैं,
लग जाता है वक्त मगर हिम्मत का फल वो चखते हैं।

पर्वत की चोटी चढ़ना हो या करना हो दरिया पार,
काम सभी धीरज से होता जान अगर ले ये संसार।

कठिन तपस्या करते रहते साधु-संत और संन्यासी,
युगों-युगों तक विचरण करते वन में रह कर वनवासी।

लक्ष्य नहीं जब तक पा लेते धैर्य नहीं वो खोते हैं,
दृढ़ निश्चयी ईश भक्ति में तन का बोझा ढोते हैं।

बहुत बड़ी धीरज की शक्ति होती है सब पहचानो,
धीरज से ईश्वर मिल जाते मानो या फिर मत मानो।

धीरज अगर छोड़ दे दरिया तो प्रलयंकर हो जाये,
कर दे नष्ट भ्रष्ट धरती सब गोद मौत की सो जाये।

मानव की पहचान धैर्य धारण करने से होती है,
धैर्य छोड़ धारे दानवता तो मानवता रोती है।

धैर्य बढ़ाता है जीवन में साहस शौर्य बुद्धि विवेक,
सबका समावेश हो दिल में मानव कार्य करे सब नेक।

धैर्य देखना है तो देखो सीमा पर सैनिक दल का,
तब ही लगता पता है उनके शौर्य धैर्य आत्मबल का।

अगर लक्ष्य पाना है अपना धीर रखो अपने मन में,
जीत सदा होगी हारोगे कभी नहीं इस जीवन में॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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