सरफ़राज़ हुसैन ‘फ़राज़’
मुरादाबाद (उत्तरप्रदेश)
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अँधेरे मुस्कुराते हैं उजाले बोल पड़ते हैं।
वो जब तशरीफ़ लाते हैं तो रस्ते बोल पड़ते हैं।
सितम ‘की इन्तिहा होने पे गूँगे बोल पड़ते हैं।
परिन्दे ‘फड़फड़ाते हैं तो पिंजरे बोल पड़ते हैं।
तुम्हारे ह़ुस्ने ज़ेबा की झलक पाते ही ऐ दिलबर,
निगाहें ‘रक़्स करती हैं नज़ारे बोल पड़ते हैं।
हम अपनी हार को तस्लीम कर लेते हैं हँस-हँस कर,
तुम्हारे साथ जब नयना तुम्हारे बोल पड़ते हैं।
कहो ‘क्या कुछ नहीं ‘होता भला इनके खनकने से,
अदालत ‘में भी सिर चढ़कर ये सिक्के बोल पड़ते हैं।
जो अकसर रोते रहते हैं यहाँ उन मुफ़लिसों के भी,
किसी ‘से हो तसादुम तो ख़ज़ाने बोल पड़ते हैं।
‘फ़राज़’ इन रहनुमाओं से कोई जब बात करता है,
तो ‘इनसे पेशतर ही इनके ‘चमचे बोल पड़ते हैं॥