कुल पृष्ठ दर्शन : 425

You are currently viewing नशे से जन-धन की घोर हानि

नशे से जन-धन की घोर हानि

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
*****************************************************

अंतरराष्ट्रीय नशा निवारण दिवस-२६ जून विशेष….

नशा एक ऐसी बुराई है,जो हमारे समूल जीवन को नष्ट कर देती है। नशे की लत से पीड़ित व्यक्ति परिवार के साथ समाज पर बोझ बन जाता है। युवा पीढ़ी सबसे ज्यादा नशे की लत से पीड़ित है। सरकार इन पीड़ितों को नशे के चुंगल से छुड़ाने के लिए नशा मुक्ति अभियान चलाती है,शराब और गुटखे पर रोक लगाने के प्रयास करती है। नशे के रूप में लोग शराब,गाँजा,जर्दा,ब्राउन शुगर,कोकीन, स्मैक आदि मादक पदार्थों का प्रयोग करते हैं,जो स्वास्थ्य के साथ सामाजिक और आर्थिक दोनों लिहाज से ठीक नहीं है। नशे का आदी व्यक्ति समाज की दृष्टि से हेय हो जाता है और उसकी सामाजिक क्रियाशीलता शून्य हो जाती है,फिर भी वह व्यसन नहीं छोड़ता है। ध्रूमपान से फेफड़े में कैंसर होता है,वहीं कोकीन,चरस,अफीम उत्तेजना बढ़ाने का काम करती है,जिससे समाज में अपराध और गैरकानूनी हरकतों को बढ़ावा मिलता है। तम्बाकू के सेवन से तपेदिक,निमोनिया और साँस की बीमारियों का सामना करना पड़ता है। इनके सेवन से जन और धन दोनों की हानि होती है।
हिंसा,बलात्कार,चोरी,आत्महत्या आदि अनेक अपराधों के पीछे नशा एक बहुत बड़ी वजह है। शराब पीकर गाड़ी चलाते हुए दुर्घटना करना,शादी-शुदा व्यक्तियों द्वारा नशे में पत्नी से मारपीट करना आम बात है। मुँह,गले व फेफड़ों का कैंसर,रक्तचाप, अल्सर,यकृत रोग,अवसाद एवं अन्य अनेक रोगों का मुख्य कारण विभिन्न प्रकार का नशा है। भारत में केवल एक दिन में११ करोड़ सिगरेट फूंकी जाती है। इस तरह देखा जाए तो १ वर्ष में ५० अरब का धुआँ उड़ाया जाता है।
प्रति वर्ष लोगों को नशे से छुटकारा दिलवाने के लिए ३० जनवरी को नशा मुक्ति संकल्प और शपथ दिवस,३१ मई को अंतरराष्ट्रीय ध्रूमपान निषेध दिवस,२६ जून को अंतरराष्ट्रीय नशा निवारण दिवस और २ से ८ अक्टूबर तक भारत में मद्य निषेध दिवस मनाया जाता है,मगर हकीकत में ये दिवस कागजी साबित हो रहे हैं।
वर्तमान में देश के २० प्रतिशत राज्य नशे की गिरफ्त में हैं। इनमें पंजाब राज्य का नाम प्रमुखता से शीर्ष पर है। पंजाब के बाद मणिपुर और तमिलनाडू है। पंजाब के हालात इस समय सबसे खराब बताये जा रही हैं जहां सीमा पार से लगातार नशीले पदार्थों की तस्करी सुर्खियों में हैं। पंजाब की युवा पीढ़ी नशे की सर्वाधिक शिकार है। पंजाब के हालात पर यदि शीघ्र गौर नहीं किया गया और नशे पर अंकुश नहीं लगाया गया तो हरे-भरे पंजाब को नष्ट होने से कोई भी नहीं बचा पाएगा।
हमारे समाज में नशे को सदा बुराइयों का प्रतीक माना और स्वीकार किया गया है। इनमें सर्वाधिक प्रचलन शराब का है। शराब सभी प्रकार की बुराइयों की जड़ है। शराब के सेवन से मानव के विवेक के साथ सोचने-समझने की शक्ति नष्ट हो जाती है। वह अपने हित-अहित और भले-बुरे का अन्तर नहीं समझ पाता। शराब के सेवन से मनुष्य के शरीर और बुद्धि के साथ-साथ आत्मा का भी नाश हो जाता है।
एक सर्वे के अनुसार भारत में गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लगभग ३७ प्रतिशत लोग नशे का सेवन करते हैं। इनमें ऐसे लोग भी शामिल हैं जिनके घरों में दो जून की रोटी भी सुलभ नहीं है। सुबह-शाम के खाने के लाले पड़े हुए हैं,पर उनके मुखिया मजदूरी के रूप में जो कमा कर लाते हैं,वो शराब पर फूंक डालते हैं। इन लोगों को अपने परिवार की चिन्ता नहीं है। ऐसे लोगों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। ये लोग कहते हैं कि,वे गम को भुलाने के लिए नशे का सेवन करते हैं। उनका यह तर्क कितना बेमानी है,जब यह देखा जाता है कि उनका परिवार भूखे ही सो रहा है। एक स्वैच्छिक संगठन की रिपोर्ट में यह जाहिर किया गया है कि कुल पुरूषों की आबादी में से आधे से अधिक आबादी शराब तथा अन्य प्रकार के नशों में अपनी आय का आधे से अधिक पैसा बहा देते हैं।
कहा जा रहा है कि नशे का प्रचलन केवल आधुनिक समाज की देन नहीं है,अपितु प्राचीनकाल में भी इसका सेवन होता था।
देश में नशाखोरी में युवा वर्ग सर्वाधिक शामिल हैं। मनोचिकित्सकों का कहना है कि युवाओं में नशे के बढ़ते चलन के पीछे बदलती जीवन शैली, परिवार का दबाव,परिवार के झगड़े,इन्टरनेट का अत्यधिक उपयोग,एकाकी जीवन,परिवार से दूर रहने,पारिवारिक कलह जैसे अनेक कारण हो सकते हैं। आजादी के बाद देश में शराब की खपत ६० से ८० गुना अधिक बढ़ी है। यह भी सच है कि शराब की बिक्री से सरकार को बड़े राजस्व की प्राप्ति होती है,मगर इस प्रकार की आय से सामाजिक ढांचा क्षत-विक्षत हो रहा है। परिवार के परिवार खत्म होते जा रहे हैं। हम विनाश की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। देश में शराबबंदी के लिए कई बार आंदोलन हुआ,मगर सामाजिक-राजनीतिक चेतना के अभाव में इसे सफलता नहीं मिली। सरकार को राजस्व प्राप्ति का यह मोह त्यागना होगा,तभी समाज और देश मजबूत होगा।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

Leave a Reply