श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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छोड़ के आया हूँ दुनिया,जाना है मुझे गंगा पार में,
नाव फँसी मझधार में,कैसे जाऊॅ॑ अब उस पार मैं।
नहीं संग में हैं हमारे श्रीगुरु,नहीं हैं पिता परमेश्वर,
बिन मांझी की नय्या डोल रही है इधर-कभी उधर।
करती हूँ मैं सादर प्रणाम,दया करो हे रघुनन्दन,
पार करा दो मुझे भवसागर,कर रही हूँ मैं वन्दन।
भवसागर तट खड़ा होकर के हॅ॑स रहा है यमराज,
बोला-वाह रे मानव,धर्म-कर्म तुझे याद आया आज।
स्मरण करो गुरु को,गवाह बनेंगे तो जाना गंगा पार,
वरना मैं यमराज तुझे,डूबा दूॅ॑गा अभी बीच मझधार।
आ गए श्रीगुरु बोले,चलो मैं ले जाऊॅ॑गा गंगा पार,
मात-पिता की है की सेवा,निभाया कुल व्यवहार।
श्रीगुरु का चरण धर के,बोला-माया ने मुझे था जकड़ा,
दूर हटे यमराज तभी,जब श्रीगुरु का चरण पकड़ा।
पूज्य गुरुदेव तब बन गए,उस नय्या का खेवईया,
चल पड़ी नाव स्वर्ग की राह,पार लग गई है नय्या।
जाना नहीं मनुष्य,महिमा शिवगुरु का बने खेवईया,
शिव गुरु ले गए शिव लोक में,साथ में चले कन्हैया॥
परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।