कुल पृष्ठ दर्शन : 27

You are currently viewing पत्थर की चक्की होती थी…

पत्थर की चक्की होती थी…

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
*******************************************

कैसे जीवन-यापन करते, क्या-क्या थे तब साज ?
आओ कुछ ही सदी पुरानी, बात करें हम आज
बिजली और मोटर ने किया, जीवन अब आसान,
पुरखों ने संघर्ष बहुत किया, बच्चों लो यह जान।

पत्थर की चक्की होती थी, हर घर एक न एक,
जिसमें पिसते आटा-बेसन, रोटी खाते सेक
ढेंकी से कूटे जाते थे, छिलके लगे अनाज,
मूसर ओखल, खलबट्टे से, होता था यह काज।

सिलबट्टे से पीस के खाते, चटनी भीगी दाल,
साफ सूप से फटका करते, छिलका मिट्टी छाल
लकड़ी से भोजन पकता, चूल्हे में बिन गैस,
कंडे ईंधन साधन बनता, गोबर गैया-भैंस।

काम बिना बिजली का होता, कच्ची होती राह,
घोड़ा बैल गाड़ी वाले, कहलाते थे शाह
बर्तन होते कांस-पीतल के, नहीं था तब स्टील,
मोटर बिन ही पैदल चलते, दिनभर कितनों मील।

प्लास्टिक-पाॅलिथीन नहीं थे, गठरी थी तब खास,
रस्सी-बाल्टी से खींचे जल, पनघट कुँए प्रयास
गुरधरा, घिवाही, अथनहा, हर घर का सामान,
बाँस टोकरी मिट्टी हाँडी, भारी इनका मान‌।

लकड़ी के पंखे से झलते, करते गर्मी शांत,
खपरैलों के घर रहकर भी, होते नहीं थे क्लांत।
आग ताप कर ठंड से बचते, हल से जोते खेत,
मनुष्य था मेहनती भारी, कठिन काम का प्रेत॥

परिचय-ममता तिवारी का जन्म १ अक्टूबर १९६८ को हुआ है और जांजगीर-चाम्पा (छग) में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती ममता तिवारी ‘ममता’ एम.ए. तक शिक्षित होकर ब्राम्हण समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य (कविता, छंद, ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नित्य आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो विभिन्न संस्था-संस्थानों से आपने ४०० प्रशंसा-पत्र आदि हासिल किए हैं।आपके नाम प्रकाशित ६ एकल संग्रह-वीरानों के बागबां, साँस-साँस पर पहरे, अंजुरी भर समुंदर, कलयुग, निशिगंधा, शेफालिका, नील-नलीनी हैं तो ४५ साझा संग्रह में सहभागिता है। स्वैच्छिक सेवानिवृत्त शिक्षिका श्रीमती तिवारी की लेखनी का उद्देश्य समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।