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पिता ही मेरी प्रेरणा

संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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जीना जैसे पिता…

पिता की खुशियाँ होते बच्चे,
वही मान-सम्मान
पुत्र पिता की जान,
पुत्री में बसते प्राण
बेटी है सारा जहान,
बेटे को थप्पड़ लगे
पिता हैं ये पहचान,
फिर भी दिल घायल
हो जाता,
जब बेटा झूठ कह,
बने अनजान।

चाँद-सितारे तोड़ के ला दें,
पिता का हृदय बड़ा महान
पुत्र निभाए साथ पिता का,
उन्हें यह लगता है अभिमान
जब भी बैठें पढ़ें-पढ़ाएं,
पिता में अदभुत ज्ञान-विज्ञान
कोई कसर न छूटने देते जब
हो जाता संज्ञान।

पिता ही मेरे अनुशासन थे,
हर कमी के सच्चे आश्वासन थे
कोई भी इच्छा मिटने न देते,
कर्ज-फर्ज़ से हर्ज न होते
सबकी इच्छा पूरी करते,
सबकी खुशियों की खातिर
अपने को गिरवी कर लेते,
त्याग सिखाया, प्रेम सिखाया
दुनिया क्यों, कैसे सभी बताया।

देश प्रेम का पाठ पढ़ाया,
देश की खातिर लड़ने वाले
आज़ादी का इतिहास बताया,
चोरी-डकैती, छीना-झपट्टा
पनपे न यह गंदा सट्टा,
जाति-पाति, धर्म-कर्म
पर सारे अच्छे बात बताए,
नहीं बताया भाव धर्म का
इंसा सेवा स्व धर्म बताए,
काश ! ये सब के मन को भाए
इंसानियत की अलख जगाए
अपने पिता के उस चिंतन पर,
चलो, बढ़ो हम मुहर लगाएं।
तभी पिता का नाम अमर हो,
वही प्रेरणा हृदय बसाएं॥

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