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प्रकृति की अनुपम छटा

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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हमारा प्यारा जबलपुर (मप्र), ब्याह के बाद का लगभग ३० वर्ष का समय यहाँ बीता। बड़ा ही सुखद अनुभव रहा इस जगह के विषय में हमारा।

सबसे पहली बात तो यह रही कि यहाँ के लोग बड़े सीधे-सादे हैं, जिन पर हम भरोसा कर सकते हैं।चाहे किसी से भी आप सहायता माँगिए, सदैव मदद करने को तैयार रहते हैं लोग।
इस शहर को ‘संस्कारधानी’ के नाम से भी जाना जाता है। ५ राज्यों से घिरा हुआ यह राज्य मध्यप्रदेश सब राज्यों की सांस्कृतिक और सामाजिक धरोहर को समेटे हुए है। मध्यप्रदेश के बीच बसने वाला यह नगर अपने-आपमें एक मिसाल है। चाहे गुजरात का गरबा हो, महाराष्ट्र की लावणी, राजस्थान का घूमर हो या अपना राई नृत्य, सबके दर्शन हो जाते हैं। उत्तर प्रदेश की होली का हुड़दंग हो या फिर बिहार की कला, सब-कुछ यहाँ दृष्टिगोचर है।
प्रत्येक त्योहार बड़ी धूमधाम और श्रद्धा से यहाँ मनाया जाता है।होली पर एक बात यहाँ विशेष देखी-यहाँ होलिका दहन में लकड़ी के साथ गोद में प्रह्लाद को लिए होलिका की मूर्ति भी जलाई जाती है। आग लगाने के बाद किसी लंबी छड़ी से प्रह्लाद को बाहर निकाल लेते हैं। यहाँ की दुर्गा पूजा भी बहुत प्रसिद्ध है, सप्तमी से लेकर नवमी तक पूरा शहर जगमग हो जाता है। नवरात्रि के ९ दिन लोग बड़े ही भक्ति भाव से माता की पूजा आराधना करते हैं।
जबलपुर शैक्षिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहाँ विश्वविद्यालय, कृषि विश्वविद्यालय, चिकित्सा महाविद्यालय, अभियांत्रिकी महाविद्यालय आदि से संबंधित विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रम भी हैं।
यहाँ के दर्शनीय स्थलों में भेड़ाघाट और धुआँधार संगमरमरी पत्थरों के लिए पूरे विश्व में प्रख्यात हैं। इसके अतिरिक्त मदन महल, रानी दुर्गावती की समाधि, बाजना मठ, गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर व भँवरताल आदि प्रसिद्ध है।
पिकनिक के लिए भी कई स्थान हैं जैसे-परियट, बरगी बाँध, भदभदा, पर्यावरण उद्यान आदि।
शहर से बाहर निकलते ही छोटी-छोटी पहाड़ियों के दर्शन होने लगते हैं। चारों तरफ़ हरियाली नज़र आती है। खरीददारी के लिए यहाँ प्रत्येक क्षेत्र में अलग-अलग बाज़ार हैं। जैसे-बड़े फौवारे का बाज़ार, गोरखपुर का बाज़ार, सदर बाज़ार आदि। एक शहर में जो कुछ होना चाहिए, वह सब यहाँ मौजूद है। न शहरों वाली भाग-दौड़ है और न गाँव जैसा सन्नाटा। मैं जब तक वहाँ थी, अपने सामने जबलपुर में बहुत सारे परिवर्तन देखे। पुरानी इमारतों के स्थान पर नये भवन बन गए हैं। पहले जैसे ख़ाली स्थान अब नहीं दिखाई देते।

मेरे पति पशु-चिकित्सालय में प्रोफ़ेसर थे, अब नहीं रहे। २ बेटे हैं, दोनों की नौकरी बाहर दूसरे शहर में है। मैं भी वहाँ एक शाला में शिक्षिका के पद पर प्रतिष्ठित थी। सेवानिवृत्ति के बाद बेटों के साथ ही रहने लगी हूँ। दोनों बेटे प्रतिष्ठित पदों पर कार्यरत हैं, शादी हो गई है बच्चे भी हैं, बहुएँ बहुत अच्छी हैं, मेरा पूरा ध्यान रखती हैं। प्रभु की कृपा से जीवन अच्छा चल रहा है। आने वाला समय मैं इसी तरह साहित्य की सेवा करते हुए बिताना चाहती हूँ। बाहर रहते आज भी मैं जबलपुर को बहुत याद करती हूँ।