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फिर जग में चित क्यों हारा है

गोलू सिंह
रोहतास(बिहार)
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ये कोमल हृदय तुम्हारा है,
ये प्रिय आँखें तुम्हारी हैं।
इनमें नीर की धारा है,
इनमें जीवन का सार सारा है।
फिर जग में चित क्यों हारा है ?
जग पे चित क्यों हारा है…?

ये तन का माया जाल है,
सर के काले बाल हैं।
ये जो मुझे रुप-रंग मिला है,
ये अंग-अंग तुम्हारा है।
फिर जग में चित क्यों हारा है ?
जग पे चित क्यों हारा है…?

है शेष कहीं मेरी अभिलाषा,
है छूट रही मन की आशा।
तन से मन का तार जुड़ा है,
ये तन का मन भी तुम्हारा है।
फिर जग में चित क्यों हारा है ?
जग पे चित चित क्यों हारा है…?

भ्रम का घर-घर भ्रमण है,
कल्पित अब हर क्षण-क्षण है।
अंधियारा हीं श्रृंग-गर्त है!
गूंजता मन मन क्रंदन है।
जीवन की लय अब टूट रही,
ये दिया जीवन भी तुम्हारा है।
फिर जग में चित क्यों हारा है ?
जग पे चित क्यों हारा है…?

हे प्रश्न यही,मैं निरुत्तर,
क्या इसी गति में बीतेगा उम्रभर ?
प्रकाश से भी अति चंचल मन,
मन मोहित मन ही मन में।
मन के मन से दूजा मन बड़ा प्यारा है।
ये सब नश्वर है,मरणशील है,
ये कल्पना तुम्हारी है।
ये दुनिया ही मकड़ी जाला,
क्या तुमने कभी विचारा है ?
फिर जग में चित क्यों हारा है ?
जग पे चित क्यों हारा हैं…?

परिचय-गोलू सिंह का जन्म १६ जनवरी १९९९ को मेदनीपुर में हुआ है। इनका उपनाम-गोलू एनजीथ्री है।lनिवास मेदनीपुर,जिला-रोहतास(बिहार) में है। यह हिंदी भाषा जानते हैं। बिहार निवासी श्री सिंह वर्तमान में कला विषय से स्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं। इनकी लेखन विधा-कविता ही है। लेखनी का मकसद समाज-देश में परिवर्तन लाना है। इनके पसंदीदा कवि-रामधारी सिंह `दिनकर` और प्रेरणा पुंज स्वामी विवेकानंद जी हैं।

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