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कहाँ है सुकुमार ?

ऋचा सिन्हा
नवी मुंबई(महाराष्ट्र)
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वो हर रोज़ जाती है तालाब के किनारे
बेचैन-सी ढूँढ रही है अपने सुकुमार को,
जो वादा कर गया था कल आने का
पर कल नहीं आया एक लम्बा अरसा बीत गया।
कितनी ही बार वो सौंप चुकी है खुद को
कितनी ही बार प्यार में लुटा चुकी है खुद को,
हर बार वादा दुल्हनियाँ बनाऊँगा एक दिन
चहलकदमी कर रही है आम्र वृक्ष तले,
जड़-सी काया लिए ढो रही है खुद को।
फूली आँखें बरबस बरस जाती हैं जब तब,
घर पे बाबा बिस्तर पर बाट जोह रहे हैं
किस प्रेमजाल में फँस गई बिटिया,
पर वो नहीं आया आज फिर…।
महीना-दर-महीना निकल रहा है
वो रोज़ दुपहरी आती है यहाँ और,
साँझ तले लौट जाती है…
फूल-सी बिटिया मुरझा गई है।
बाबा को बोल जल्दी आती हूँ
बाबा को पता है कोई नहीं आएगा,
असहाय कैसे समझाए इस प्रेम दिवानी को,
नहीं देखी जाती पीड़ा बिटिया की।
जो हर रोज़ मर रही है,सिसक रही है
छलनी करती उसकी वेदना कराहती-सी आवाज़,
कभी-कभी दहाड़ मार कर रोती है
रात के सन्नाटे में साथ रोता है अंधेरा।
उसे देख पंछी नहीं गाते
तालाब गुमसुम हो जाता है,
ये कैसा प्रेम..ये कैसी विरह वेदना!
ये कैसा विश्वास ? कहाँ है सुकुमार ?

परिचय – ऋचा सिन्हा का जन्म १३ अगस्त को उत्तर प्रदेश के कैसर गंज (जिला बहराइच) में हुआ है। आपका बसेरा वर्तमान में नवी मुम्बई के सानपाड़ा में है। बचपन से ही हिंदी और अंग्रेजी साहित्य में रुचि रखने वाली ऋचा सिन्हा ने स्नातकोत्तर और बी.एड. किया है। घर में बचपन से ही साहित्यिक वातावरण पाने वाली ऋचा सिन्हा को लिखने,पढ़ने सहित गाने,नाचने का भी शौक है। आप सामाजिक जनसंचार माध्यमों पर भी सक्रिय हैं। मुम्बई (महाराष्ट्र)स्थित विद्यालय में अंग्रेज़ी की अध्यापिका होकर भी हिंदी इनके दिल में बसती है,उसी में लिखती हैं। इनकी रचनाएँ विभिन्न पत्रिकाओं में छप चुकीं हैं,तो साझा संग्रह में भी अवसर मिला है।

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