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वास्तु का नया फ़ण्डा

अरुण अर्णव खरे 
भोपाल (मध्यप्रदेश)
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पहले लोग जब घर बनाते थे,या खरीदते थे तो उनकी प्राथमिकता होती थी घर में समुचित रोशनी हो,खुला-खुला हो,हवादार हो। बाद में वास्तु के अनुसार घर बनाने और खरीदने की होड़ होने लगी,पर हमारे मित्र पण्डित नरोत्तम देव शर्मा आजकल एक नई समस्या से जूझ रहे हैं,जो उनको वास्तु से भी ज्यादा जरूरी लग रही है।

पण्डित नरोत्तम देव शर्मा का ज्योतिष और वास्तु में ज़बर्दस्त विश्वास है। उनके विश्वास का आलम यह है कि ज़िन्दगी में कोई भी काम उन्होंने बिना चौघड़िया देखे नहीं किया। दक्षिणमुखी घरों के गृहप्रवेश तक में कभी नहीं गए..चाहे रिश्तेदार और मित्र कितने ही नाराज़ हो जाएँ। इसका उन्हें नुकसान भी उठाना पड़ा,पर मलाल कभी नहीं हुआ। उनके बहुत से रिश्तेदारों ने उनसे कन्नी काट ली,और बहुत से मित्र सुरक्षित दूरी बनाकर चलने लगे।

चौघड़िए के चक्कर में वह अक्सर ही ऑफिस पहुँचने में लेट हो जाते,बॉस की डाँट खाते,सहयोगियों के बीच मजाक बनते,पर मजाल उनकी आस्था पलभर के लिए भी कभी डिगी हो। बल्कि,उनकी आस्था दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही गई। हद तो तब हो गई,जब उन्होंने अपने पहले बच्चे का जन्म शुभ मुहूर्त देखकर सीजेरियन कराने की जिद पकड़ ली,और वह अपनी जिद पूरी करने में सफल भी रहे। दूसरा बच्चा तो सामान्य हुआ, लेकिन बड़े बच्चे को जैसे ही उनकी जिद के बारे में पता चला,वह उनसे खिंचा-खिंचा रहने लगा। बल्कि, नाराज रहने लगा,कहना ज्यादा उपयुक्त होगा। उनको चिढ़ाने के लिए उसने अपने मोबाइल की रिंगटोन भी “बापू तू तो हानिकारक है” लगा ली थी। यह देखकर नरोत्तम जी दुखी रहते,सोचते,जिस बेटे को शुभ मुहूर्त में इस दुनिया में लेकर आए,वही उनको गलत और माँ का अपराधी समझता है। दिन गुजरते रहे,पर न नरोत्तम जी को कभी लगा कि उनसे गलती हुई है और न बेटे को समझ में आया कि पिता ने उसके अच्छे भविष्य के लिए ऐसा किया था।

बहुत मेहनत से खोजने पर नरोत्तम जी को एक डुपलेक्स मिल ही गया,जिसकी आठों दिशाओं में वास्तु के हिसाब से निर्माण किया गया था। प्रवेश द्वार पूर्व दिशा में,किचन पश्चिम में,एक बेडरूम उत्तर पश्चिम में,दूसरा बेडरूम दक्षिण पश्चिम में,उत्तर पूर्व में पानी का स्त्रोत व पूजाघर,उत्तर में बालकनी व खुली जगह…कुल मिला कर नरोत्तम जी के मन का घर,लेकिन उनके पुत्रों ने पहली फ़ुरसत में ही सिरे से नकार दिया।

नरोत्तम जी ने पूछा-“क्या कमी है इस मकान में,चार महीनों की मशक्कत के बाद ऐसा मकान मिला है। हवादार है,वास्तु के हिसाब से भी सही है,फिर क्यूँ तुम लोगों को पसन्द नहीं है।”

जवाब छुटके ने दिया-“क्या फ़ायदा है ऐसे घर का,जिसके किसी भी कमरे में फ़ोर-जी के सिग्नल न मिलें। ड्यूल सिम का हमारा स्मार्ट फ़ोन जहाँ आकर टें बोल जाए। आप ही बोलो पापा,हम ऐसे घर में कैसे रह सकते हैं।”

नरोत्तम जी ने कृतज्ञ भाव से छुटके को देखा। उनको भी तो फ़ोर-जी सिग्नल की उतनी ही जरूरत है,जितनी बच्चों को। वह दिन का चौघड़िया भी तो आजकल मोबाइल पर ही देखते हैं।

अब नरोत्तम जी एक हाथ में भवन भास्कर की पुस्तक पकड़े और दूसरे हाथ में ड्यूल सिम का मोबाइल लिए नए सिरे से मकान ढूंढने में जुट गए हैं। सबसे पहले वह मोबाइल पर फ़ोर-जी सिग्नल देखते हैं,इसके बाद वास्तु के हिसाब से मकान के निर्माण पर ध्यान देते हैं।

परिचय:अरुण अर्णव खरे का जन्म २४ मई १९५६ को अजयगढ़,पन्ना (म.प्र.) में हुआ है। होशंगाबाद रोड (म.प्र.), भोपाल में आपका घरौंदा है। आपने भोपाल विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की शिक्षा प्राप्त की है। आप लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग में मुख्य अभियंता पद से सेवानिवृत हैं। कहानी और व्यंग्य लेखन के साथ कविता में भी रुचि है। कहानियों और व्यंग्य आलेखों का नियमित रूप से देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं सहित विभिन्न वेब पत्रिकाओं में भी प्रकाशन जारी है। श्री खरे का १ व्यंग्य संग्रह और १ कहानी संग्रह सहित २ काव्य कृतियाँ-“मेरा चाँद और गुनगुनी धूप” तथा “रात अभी स्याह नहीं” प्रकाशित है। कुछ सांझा संकलनों में भी कहानियों तथा व्यंग्य आलेखों का प्रकाशन हुआ है। कहानी संग्रह-“भास्कर राव इंजीनियर” व व्यंग्य संग्रह-“हैश,टैग और मैं” प्रकाशित है। कहानी स्पर्धा में आपकी कहानी ‘मकान’ पुरस्कृत हो चुकी है। गुफ़्तगू सम्मान सहित दस-बारह सम्मान आपके खाते में हैं। इसके अलावा खेलों पर भी ६ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। भारतीय खेलों पर एक वेबसाइट का संपादन आपके दायित्व में है। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर भी वार्ताओं का प्रसारण हुआ है। आप मध्यप्रदेश में कुछ प्रमुख पत्रिकाओं से भी जुड़े हुए हैं। अमेरिका में भी काव्यपाठ कर चुके हैं। 

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