प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)
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बचपन की यादें सुखद, दें मीठे अहसास।
बचपन के दिन थे भले,थे बेहद ही ख़ास॥
दोस्त-यार सब थे भले, जिनकी अब तक याद।
कुछ ऊँचे अफ़सर बने, वे अब भी आबाद॥
कुछ पढ़ने में तेज थे, कुछ बेहद कमज़ोर।
शिक्षक सच्चे गुरु, रखा काम पर ज़ोर॥
बचपन प्यारा था बहुत, सुंदर थे सब कक्ष।
मेरी शाला भव्य थी, नालंदा-समकक्ष॥
दिन शाला के स्वर्ण थे, मस्ती अरु आनंद।
नहीं फिक्र,चिंता रही, केवल मौज़ पसंद॥
पढ़ना सचमुच कष्टमय, मस्ती से पर प्यार।
शाला के दिन यूँ समझ, माया का संसार॥
कुछ शिक्षक बेहद भले, कुछ हिटलर का रूप।
हम सबसे जो ऐंठकर, बने अकड़ के भूप॥
पैदल ही दौड़े बहुत, शाला यद्यपि दूर।
खेल कबड्डी-दौड़ के, रखते व्यापक नूर॥
पिकनिक, मस्ती, खेल की, बहुत निराली शान।
टॉकिज फिल्मों का किया, हर पल ही जयगान॥
उड़ा पतंगें मस्तियाँ, शाला थी रंगीन।
पर पीटें पापा कभी, बन जाता तब दीन॥
सीखा हमने मन लगा, करना सद् आचार।
करना आदर सीखकर, पावन बने विचार॥
शाला की यादें भली, ना भूलूँ ताउम्र।
मीठापन जो दे रहीं, बना रहीं अति नम्र॥
सोचूँ बचपन लौटकर, आ जाता इक बार।
तो कुछ दिन को ही सही, मुस्काता संसार॥
बचपन तो मासूम था, किंचित भी नहिं झूठ।
अब तो देखो सत्य का, खड़ा हुआ बस ठूँठ॥
पावन था बचपन बहुत, पर अब तो बस याद।
सब कुछ तो है अब मगर, हासिल है अवसाद॥
बचपन में तो धर्म की, कोई नहिं दीवार।
ऊँचनीच से दूर रह, करते थे सब प्यार॥
बचपन नित ज़िन्दा रहे, तो सुखमय संसार।
अँधियारा रोये कहीं, पले मात्र उजियार॥
परिचय–प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।