गोष्ठी…
भोपाल (मप्र)।
छोटे छोटे बच्चों के हाथ में मोबाइल देने के स्थान पर उन्हें नानी-दादी वाली कहानियाँ, लोरी और कविताएँ सुनाना चाहिए, ताकि उनके मस्तिष्क का समुचित विकास हो। बाल साहित्य इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
वरिष्ठ बाल साहित्यकार श्रीमती ऊषा जायसवाल ने मध्यप्रदेश लेखक संघ द्वारा आयोजित प्रादेशिक बाल साहित्य गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में यह बात कही। गोष्ठी के सारस्वत अतिथि बलराम गुमाश्ता ने कहा कि यह समझने की जरूरत है कि बाल मस्तिष्क कोई खाली गुल्लक नहीं है, जिसमें आप मनमर्जी उपदेश जमा करते रहें। बाल मन के सीखने और संज्ञान की प्रक्रिया के रचनात्मक स्वभाव और रसायन को एक बाल साहित्यकार को जानना बहुत आवश्यक है, तभी वह रोचक बाल साहित्य लिखेगा। आपने बाल कविता ‘हरे हो गए तोते’ तथा ‘लिया घोंसला एक बना’ का वाचन किया।
संघ के संरक्षक डाॅ. राम वल्लभ आचार्य ने कहा कि बाल साहित्य ऐसा हो, जो आम बोल-चाल की भाषा में रोचकता के साथ लिखा गया हो, ताकि बच्चे उसे तुरन्त समझ सकें। आपने अपनी बाल कहानी ‘पहली गलती’ सुनायी। संघ के प्रदेशाध्यक्ष राजेन्द्र गट्टानी ने कहा कि भविष्य में हम प्रयास करेंगे कि बाल साहित्य गोष्ठी में श्रोताओं के रूप में बच्चों को भी आमंत्रित किया जाए। गोष्ठी में आमंत्रित बाल साहित्यकार डाॅ. मालती बसंत ने लघु कहानी ‘अनुकूलन’ तथा बाल कविता ‘मच्छर भाई’ का पाठ किया। राजेन्द्र श्रीवास्तव ने रोचक बाल कहानी ‘मिली और मनचली’ का पाठ किया, जबकि श्रीमती जया आर्य ने लघु बाल कथा ‘शेवन्ती’ एवं ‘अभिराज की समझ’ सुनाई।
मनोज जैन ‘मधुर’ ने भी बाल गीत ‘सूरज तुम्हें जगाने आया’ सुनाकर सार्थक संदेश दिया। अशोक धमेनियाँ, डाॅ. कैलाश गुप्ता सुमन, डाॅ. क्षमा पाण्डेय आदि ने भी रचनाएँ पढ़ी।
इस अवसर पर डाॅ. कैलाश गुप्ता की पुस्तक ‘भोर हो गयी, जागो बच्चों’ का लोकार्पण किया गया।
प्रारंभ में अतिथियों ने सरस्वती प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। तत्पश्चात प्रादेशिक उपाध्यक्ष ऋषि श्रंगारी द्वारा स्वागत वक्तव्य दिया गया। संचालन मनीष बादल व डाॅ. प्रार्थना पंडित ने किया। अनिरुद्ध सिंह सेंगर ने आभार प्रदर्शन किया।