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बदरी…

डॉ.विद्यासागर कापड़ी ‘सागर’
पिथौरागढ़(उत्तराखण्ड)
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देखो बादल आ गया,
भरकर तन में नीर।
भर-भर गागर ढोलता,
होकर तनिक अधीर॥

नदिया सागर से कहे,
लगा रही थी टोह।
हरियाली होकर धरा,
मन को लेती मोह॥

बादल दौड़ें गगन में ,
धरकर नव-नव रूप।
भांति-भांति के रंग ले,
लगते नवल अनूप॥

ओ काले बादल सुनो,
जाओ पिय के देश।
आँखों में सावन भरा,
देना यह संदेश॥

बादल तेरी दुन्दुभी,
बनी चित्त की चोर।
उर करता भीजूं जरा,
नाचूं जैसे मोर॥

. बादल ने अब भर लिया,
अपने उर उन्माद।
बांट रहा वो दीन को,
झूम-झूम अवसाद॥

बड़ी कुटिल है देखिये,
बादल की मुस्कान।
अधरों में भरने लगा,
जल परलय के गान॥

परिचय-डॉ.विद्यासागर कापड़ी का सहित्यिक उपमान-सागर है। जन्म तारीख २४ अप्रैल १९६६ और जन्म स्थान-ग्राम सतगढ़ है। वर्तमान और स्थाई पता-जिला पिथौरागढ़ है। हिन्दी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले उत्तराखण्ड राज्य के वासी डॉ.कापड़ी की शिक्षा-स्नातक(पशु चिकित्सा विज्ञान)और कार्य क्षेत्र-पिथौरागढ़ (मुख्य पशु चिकित्साधिकारी)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत पर्वतीय क्षेत्र से पलायन करते युवाओं को पशुपालन से जोड़ना और उत्तरांचल का उत्थान करना,पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के समाधान तलाशना तथा वृक्षारोपण की ओर जागरूक करना है। आपकी लेखन विधा-गीत,दोहे है। काव्य संग्रह ‘शिलादूत‘ का विमोचन हो चुका है। सागर की लेखनी का उद्देश्य-मन के भाव से स्वयं लेखनी को स्फूर्त कर शब्द उकेरना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-सुमित्रानन्दन पंत एवं महादेवी वर्मा तो प्रेरणा पुंज-जन्मदाता माँ श्रीमती भागीरथी देवी हैं। आपकी विशेषज्ञता-गीत एवं दोहा लेखन है। 

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