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बाढ़ और सूखा:पहल आवश्यक

राधा गोयल
नई दिल्ली
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कहीं पर इतनी बारिश है कि बाढ़ आ गई है। पहले मुंबई में महाराष्ट्र में भारी बारिश की वजह से कई ट्रेनों को रद्द करना पड़ा और कई ट्रेनों का रास्ता बदलना पड़ा। ट्रेनों की आवाजाही प्रभावित होने से अलग-अलग जगह हजारों यात्री फँस गए। मुम्बई के अलावा कई जिलों में बाढ़ से हालात बदतर हो गए। अब चेन्नई और केरल में बाढ़ के कारण लाखों लोग बेघर हो गए हैं।
इतने वर्षों में भी बाढ़ से निपटने के उपाय नहीं किए गए। कभी सूखा तो कभी बाढ़ और फिर राहत कार्यों के नाम पर लाखों की लूट। पहले ही राहत के उपाय क्यों नहीं किए जाते ? क्यों नहीं वर्षा के जल को संचित करने के लिए अण्डरग्राउण्ड वाटर स्टोरेज टैंक बनाए जाते ? जगह-जगह कुएँ और तालाब हों तो बारिश के मौसम में बाढ़ से जनजीवन प्रभावित नहीं होगा और गर्मियों में पानी की समस्या से नहीं जूझना पड़ेगा। क्या मानवाधिकार संगठन इस तरफ सरकारों का ध्यान आकर्षित कर सकते हैं ? आपदा न आए,उसके इन्तजाम क्यों नहीं किए जाते ?
हर वर्ष बाढ़ आती है। हर वर्ष सूखा पड़ता है।मानसून आने से पहले नालों की सफाई नहीं होती जिसके कारण जल निकासी मार्ग अवरुद्ध हो जाता है,और भारी बारिश में बाढ़ की स्थिति पैदा हो जाती है। कितनों को बेघर कर देती है। कितनों के अरमानों में आग लगा देती है। पाई-पाई जोड़कर जो आशियाना बनाया,उसे यह बैरन बाढ़ बहाकर ले जाती है।
बाढ़ आने का मतलब साफ है कि पानी की कोई कमी नहीं है। पानी के संग्रहण की कमी है। गर्मियों में जनता पानी को तरसती है और पानी खरीदना पड़ता है,वहीं बाढ़ आने पर यह पानी तबाही लाता है। तभी तो किसी ने कहा है कि,-
‘अति का बरसना न अच्छा,
अति की भली न धूप
लोग बारिश में न तड़पें,
लोग पानी को न तरसें।’
चलो इसके बारे में कोई ठोस उपाय सोचें और उसे वास्तविकता का जामा पहनाएँ,ताकि फिर कोई गुलशन न उजड़े।
यह काम केवल सरकारी स्तर पर ही हो सकते हैं। बाढ़ नियंत्रण मंत्रालय की कोई जिम्मेदारी है या नहीं ? जनता भी सहयोग करने को तैयार हो जाएगी। सरकारें पहल तो करें।

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