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बीते ३ सालों में बहुत सीखा

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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वैसे तो बीते वर्ष २०२० से २०२२ तक हमने मानसिक तनाव बहुत झेला है। यह मानसिक कष्ट अनेक कारणों से रहा, जिसमें प्रमुख चीन-पाकिस्तान के साथ युद्ध का भय व ‘कोरोना’ महामारी व बाद वाले प्रभाव रहा, परन्तु सभी यह भी जानते हैं कि हमारी सरकार ने चीन व पाकिस्तान दोनों पर अपना दबदबा बनाए रखा और महामारी पर बहुत हद तक काबू भी पाने में सफल रही। यही सभी कारण रहे हैं, जिसके चलते बीते ३ साल बहुत कुछ सिखा के भी गए हैं और उस शिक्षा ने हमारी सोच व कार्य पद्धति में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया है।
यही कारण है कि, जब इन दिनों वापस फिर ‘कोरोना’ की आहट सुनने में आ रही है, तब हम सब इस बार उसको हावी नहीं होने देने के प्रति न केवल जागरूक हैं, बल्कि प्रतिबद्ध भी हैं। इसी कारण, हम सभी ने इस बार ‘मास्क और दो गज की दूरी…जान बचाने के लिए फिर जरूरी’ अपनाना शुरू कर दिया है।
अब बीते इन तीनों साल में हमने सीखा कि- अपने सीमित संसाधनों में भी कैसे जी सकते हैं। कोरोना काल वाले समय में हमने घर की चारदीवारी में रहने के लिए आवश्यक संयम का महत्व सीखा, अर्थात खासकर वे जिनके बच्चे दूर रहते हैं। बीते सालों में हमने हर तरह की समस्या से संघर्ष करना भी सीखा। इसी तरह इन सालों में हमने स्वयं का काम स्वयं करना चाहिए, के महत्व को समझा। एक-दूसरे की मदद करना हमें बचपन से सिखाया जाता रहा है, लेकिन इसका महत्व भी बहुत ही बढ़िया ढंग से हमें इन बीते सालों में सीखने को मिला है।
मानसिक संतुलन की आवश्यकता क्यों और कैसे बनाए रखना है, इसको भी हमने अच्छी तरह से सीखा है। अन्न की कीमत क्या होती है, इसका अनुभव भी हर स्तर के लोगों ने इन बीते सालों में समझा भी है। ‘सावधानी हटी और दुर्घटना घटी’ का महत्व इन बीते सालों में बखूबी मालूम पड़ा है। बीते सालों में अमीरी-गरीबी का भेद जिस तरह से मिटा है, वह भी एक अलग तरह का अनुभव हुआ है। बीते सालों में मितव्ययिता का महत्व भी समझने में आया।

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