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भारतीय सेना का आधुनिक योद्धा

शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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जनरल विपिन रावत की सार्वजनिक पहचान सैन्य सेवाओं से अधिक प्रथम सेना प्रमुख के तौर पर प्रतिष्ठित हुई। उत्तराखंड में रावी- व्यास नदियों के आसपास फैली पौड़ी गढ़वाल में १६ मार्च १९५८ के सूर्योदय को भला कैसे अविस्मरणीय किया जा सकता है? सेवानिवृत्त हुए चौहान राजपूत वंश के पिता थलसेनाध्यक्ष ले. जनरल लक्ष्मण सिंह,परमार क्षत्रिय वंश माता पॉलीन कोच और ब्रिटिश शासन में सूबेदार के पद पर रहे दादा के पोते जनरल विपिन रावत सहित ३ पीढ़ियों की देशसेवा को कैसे देश भूल सकता है ? इनके परिवार के अन्य सदस्य भी सैन्य सेवा में महत्वपूर्ण योगदान कर्तव्यनिष्ठा से दे रहे हैं।
जनरल विपिन रावत ने देहरादून से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर राष्ट्रीय रक्षा अकादमी,भारतीय सैन्य अकादमी (देहरादून) से प्रथम श्रेणी में स्नातक की उपाधि ‘सोर्ड ऑफ़ ऑनर’ के साथ तो २०११ में सैन्य मीडिया अध्ययन के क्षेत्र में शोध कर पीएच.-डी. की मानद उपाधि प्राप्त कर ‘न उम्र की सीमा हो, न कोई बंधन’ की उक्ति को सिद्ध कर दिखाया।
विपिन रावत की सैन्य सेवा का आरंभ १९७८ में अपने पिता की ही इकाई ११ गोरखा राइफ़ल की पांचवीं बटालियन में शामिल होने से हुआ और जनवरी १९७९ में सेना में प्रथम नियुक्ति हुई। तत्पश्चात सीढ़ी दर सीढ़ी पदोन्नति अपनी सैन्य सेवा से प्राप्त करते रहे,और अंतिम सीढ़ी प्रथम सेना प्रमुख सीडीएस रही। सैन्य-सेवा कार्यकाल के दौरान सबसे कठिन जगहों पर कर्तव्यनिष्ठा से अगुवाई कर योगदान दिया।
जनरल विपिन द्वारा प्राप्त परम विशिष्ट सेवा पदक,उत्तम युद्ध सेवा पदक,अतिविशिष्ट सेवा पदक,युद्ध सेवा पदक,सेना पदक और विशिष्ट सेवा पदक आदि पुरस्कारों व सम्मान की श्रृंखला अति रोमांचित कर देती है।
थल सेना प्रमुख का पद जनरल विपिन रावत ने २०१६ में और जनवरी २०२० में प्रथम सेना प्रमुख सीडीएस के रूप में पदभार संभाला,लेकिन सेना प्रमुख नियुक्त होने के पश्चात उनकी सैन्य सेवाओं की उड़ान में आधुनिकीकरण की होड़ जुड़ गई। हाँलांकि, उनकी यह नियुक्ति भाई-भतीजावाद जैसे विवादों में घिरी रही,और २ वरिष्ठ लेफ़्टिनेंटों के बीच बेचैनी भी पैदा करती रही। रक्षा प्रमुख के रूप में जनरल विपिन रावत की सैन्य सेवा अपने अद्भुत और अदम्य साहस से परिचित करवाती है। देश व पड़ोसी देशों के बीच द्विपक्षीय चर्चाएँ एक नए अध्याय का प्रारंभ करती परिलक्षित होती हैं।
सीडीएस के रूप में जनरल रावत का कार्य थलसेना,वायुसेना और जल सेना के बीच एक माला में सबको पिरोना था,जिसमें काफी विवादों व बहसों जैसी कठिनाईयों का सामना किया। कई वर्षों से विवादित तथ्यों को सुलझाते हुए जनरल रावत ने भारतीय सैन्य सेवाओं में आधुनिकीकरण करने का अति महत्वपूर्ण कार्य किया। जनरल विपिन रावत के राष्ट्रीय सुरक्षा और नेतृत्व पर लिखे लेखों ने उन्हें अच्छा लेखक भी साबित किया है। उनके द्वारा भारतीय राजनीति पर अनेक बार किए कटाक्ष काफी चर्चित भी रहे हैं।
२०१९ में भारत को चीन और पाकिस्तान के ख़िलाफ़ २ मोर्चों पर एकसाथ युद्ध करने के लिए तैयार रहने की चेतावनी भी दी। चीन और पाकिस्तान के साथ भारत की सीमाओं के विवाद के कारण, ‘युद्ध वास्तविकता के दायरे में है। भले ही तीनों देशों के पास परमाणु हथियार हों,’ उनकी यह उक्ति भी आलोचकों के गले की हड्डी बन काफी समय तक फँसी रही।
अद्वितीय शक्ति के रक्षक सीडीएस जनरल विपिन रावत की कर्तव्यनिष्ठता,पत्नी मधुलिका रावत व अन्य वरिष्ठ कर्मठ सैनिकों व नवयुवक सैनिकों के साथ विमान आकस्मिक दुर्घटना ग्रस्त होने पर धू-धू कर काली स्याह कर गई। सैन्य सेवा के प्रति जनरल विपिन की सख़्त मिज़ाजी,बेबाक़ी एवं तिरछी टोपी से डर कर रहने की पाकिस्तान को चेतावनी देने वाली निडरता, नीलगिरी की वादियों के चाय बगान में ख़ामोश हो गई। यह घटना हमारे देश की सबसे बड़ी क्षति के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह लगाती है। कई वर्ष पहले घटित हुई अति घिनौनी दुर्घटनाएँ और पिछले कुछ वर्षों में १ विदेश मंत्री और २ रक्षा मंत्रियों का भी चले जाना एवं अन्य सैन्य विमान दुर्घटनाएँ आदि…एक सवाल उत्पन्न करती हैं, ‘ये कैसा लोकतंत्र है जिसमें कोई भी सुरक्षित नहीं ?’
प्रथम सी डी एस जनरल रावत की आकस्मिक मृत्यु से स्तब्ध देशवासी ‘भारतीय सेना के आधुनिक योद्धा’ के रूप में उन्हें सदैव स्मरण रखेंगे।

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