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भारत माता का राजदुलारा चन्द्रशेखर आजाद

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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पुण्यतिथि (२७ फरवरी) विशेष

भारत राष्ट्र को स्वतन्त्रता दिलाने हेतु प्राण निछावर करने वाले स्वतन्त्रता सेनानी चन्द्रशेखर आजाद( बचपन का नाम चन्द्रशेखर सीताराम तिवारी)एक ऐसे सेनानी थे जो अंग्रेजों के हाथों कभी भी जीवित गिरफ्तार न होने की अपनी प्रतिज्ञा पर अडिग रहे। इसी के चलते वे न केवल पूरे विश्व में विख्यात हुए,बल्कि उनका नाम भारत के स्वतंत्रता इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गया।
इनको इनकी माताजी ने संस्कृत का ज्ञान प्राप्त करने हेतु काशी विद्यापीठ भेजा लेकिन वहाँ वे इस तरह राष्ट्रवाद से परिचित हुए कि गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गए।
१९२१ में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने पर इनको अंग्रेजी हुकूमत ने हिरासत में ले जब जज के सामने प्रस्तुत किया तब जज द्वारा अपना नाम व पिता का नाम पूछने पर ‘मेरा नाम आज़ाद है,मेरा पिता का नाम स्वतंत्रता और पता कारावास है’ जबाब दे न केवल अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय दिया बल्कि पूरे विश्व को यह भी बता दिया कि इनमें राष्ट्रभक्ति की भावना कितनी कूट-कूट कर भरी है। उपरोक्त घटना के बाद से ही पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल व सरदार भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारी या यों कहें कि सभी क्रान्तिकारियों ने इन्हें चन्द्रशेखर आजाद के नाम से पुकारना शुरू कर दिया।
हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ने का ही परिणाम था कि अन्य साथी क्रांतिकारियों के साथ मिलकर हथियार खरीदने के वास्ते सरकारी खजानों को लूटना शुरू कर दिया। हथियार खरीदने के उद्देश्य के चलते ही ऐतिहासिक काकोरी काण्ड को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अंजाम दे ये फरार हो गए थे।
लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए इन्होंने लाहौर में अंग्रेजी पुलिस अधिकारी सॉन्डर्स को गोली से उड़ाने के बाद लाहौर की दीवारों पर
लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला ले लिया, लिख जगह-जगह परचे चिपकाए।
२७ फरवरी १९३१ को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में घिर जाने जाने के बावजूद अकेले ही बमतुल बुखारा (आजाद की पिस्तौल का नाम) की सहायता से मोर्चा संभाल अपने साथियों को सुरक्षित बाहर निकाल पाने में सफल हो गए। जब इनके पास १ गोली ही बची,तब कभी भी जीवित गिरफ्तार न होने के अपने संकल्प पर अडिग रहते हुए स्वयं को गोली मार हमेशा के लिए आजाद कर लिया।
यहाँ रोचक बात यह है कि इस अंतिम लड़ाई में इन्होंने पूरी पुलिस को इस तरह भयभीत कर दिया था,कि पुलिस वाले उनके पास जाने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे।
आजाद ने केवल एक ही कविता लिखी थी और वह अक्सर उसे गुनगुनाया करते थे-‘दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं,आजाद ही रहेंगे।’
चन्द्रशेखर आजाद अपने-आपमें एक आंदोलन थे। उनकी देश के प्रति निष्ठा, समर्पण बिल्कुल निःस्वार्थ रहा। यही कारण है कि वे आज भी देश के युवाओं को प्रभावित और प्रेरित करते हैं। भले ही वे अंग्रेजों को भारत से भगा नहीं पाए,लेकिन उनके बलिदान ने लाखों नवयुवकों को आजादी के आंदोलन में उतार दिया। यही कारण है कि उन्हें देशभक्ति का प्रतीक मान आज भी हम सभी उनका नाम बड़े ही आदर व सम्मान से लेते हैं। इस तरह आज भी वे हम सभी भारतीयों के दिलों में जिन्दा हैं। भारत की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करने वाले भारत माता के राजदुलारे अमर शहीद,महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद को उनकी पुण्यतिथि पर शत-शत नमन।

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