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भेड़ियों से सावधान

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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छोड़ कर सफर अधूरा ही कुछ लोग,
क्यों है कठिन राहों से ही भाग गए ?
मंजिल के नजदीक होने का असर है,
या कि गुमराह मुसाफिर है जाग गए ?

होती नहीं है बर्दाश्त तुमसे गुस्ताखियाँ,
तो फिर हसीन सपने क्यों दिखाए थे ?
जब छोड़ना ही था यूँ मुश्किल दौर में हमें,
तो फिर यहां तक भी साथ क्यों आए थे ?

सच ही कहा है जमाने ने ये कि यारों,
गैरों पर भरोसा न कभी भी वाजिब है
कब बदल डाले रंग ही अपना गिरगिट,
इसका पता करना कहां मुनासिब है ?

भेड़ियों से सावधान रहना ही वाजिब है,
इस छल-छद्म के मायावी से माहौल में
अक्सर घूमा करते हैं भेड़िए आजकल,
खुद को ही छुपा कर गीदड़ की खाल में।

पता करना ही बड़ा मुश्किल है इस दौर में,
कौन-सी बाजी पड़ेगी शकुनी की चाल में ?
यहां तो पूरी दाल ही काले की काली है जी,
न कि कुछ काला-काला पड़ा है दाल में॥

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