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महाकुम्भ:अद्भुत और दुर्लभ संस्कृति

सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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कौन कहता है कि उसने ईश्वर नहीं देखा…??
मैंने देखा है… महाकुम्भ में आने वाले आस्था से लबरेज प्रत्येक लोगों के चेहरे पर… दिल गदगद होते देखा है मैंने…। क्या बच्चे, क्या जवान, क्या बुजुर्ग, क्या महिलाएं, क्या पुरुष… पवित्र संगम में डुबकी लगाकर वापस लौटते लोगों के तृप्त चेहरे जैसे ईश्वर से सुखद साक्षात्कार कर अपनी अनमोल, अद्भुत-सी व्यक्तिगत जीत लिए परम सुख में मगन…। यही तो ईश्वर की मौजूदगी के सूक्ष्म संकेत हैं। बस, इसे स्वच्छ हृदय की आँखों से निहारना है। ऐसी अपरिमित श्रद्धा, भक्ति और अद्भुत प्रेम देख कर आँखों से आँसू बहने लगते हैं। लगता है, जैसे हम पुनः उसी सतयुग में पहुंच गए हैं, जब ईश्वर ने अपनी उपस्थिति से वहाँ की धरा को आनंदमय किया था।
अभी कलयुग में तीर्थराज प्रयागराज की सौभाग्यशाली धरती पर १४४ वर्षों बाद पड़ी दुर्लभ पुण्य तिथि पर गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम में पवित्र स्नान के लिए करोड़ों लोगों के जनसमुदाय को बेतहाशा पहुंचते देखना किसी आश्चर्य से कम नहीं है। ये जनसैलाब अपना जन्म सफल करना चाहता है… इतिहास का भाग्यशाली हिस्सा बनना चाहता है, कलयुग में पुनर्जीवित हुए सतयुग के दर्शन करना चाहता है।
सच… अद्भुत और बेमिसाल है भारत की संस्कृति, सनातन सभ्यता…। यह धरती पर किसी अजूबे से कम नहीं है, जिसमें शामिल होने असंख्य साधु-अघोरी, बच्चे, असमर्थ बूढ़े, शारीरिक दिव्यांग के अलावा दुनियाभर से अनेक उत्सुक भारतीय संस्कृति प्रेमी लोग चुम्बक की तरह खिंचे चले आए तथा संगम में दिव्य स्नान कर पुण्य प्राप्त किया है। मुझे गर्व है कि मैं एक भारतीय हूँ।