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माटी का पुतला

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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आओ मिल के करें विचार हम माटी का हैं पुतला,
प्रभु बनाए हैं,जीवों में,जीवन मानव का पहला।

काहे का गुमान,भाई काहे करते हम सब अभिमान,
भगवान बनाए हैं हम सभी को,माटी का सामान।

माटी का पुतला नदी किनारे का,कहाता है मेहमान,
फिर काहे करता है सब,माटी के पुतले पर गुमान।

चार दिन की जिंदगी है मनुष्य,फिर अन्धेरी रात है,
मरने के बाद जेठ की दुपहरी या सावन की बरसात है।

जीवन जिया है जब तक,दर्द कसक मन में समेटे ही रहे,
जलन भावना दिल में रख के सदा छल-कपट करते रहे।

सन्तों की बातें ठुकराए,होटल में धन-दौलत लुटाए,
अधर्म,नीच,पापी,धर्म को,कभी भी नहीं अपनाए।

भूल गया माटी का पुतला है,मिट्टी में मिल जाएंगे,
यदि धर्म नहीं करेंगे हम,सभी तो अन्त में पछताएंगे।

देखना चित्रकूट के घाट पे,रहते सभी संतन की भीर,
प्रेम के वश में होके खुद,मिलने को आये श्री रघुवीर।

चन्दन है इस देश की माटी,ये माटी से बना है पुतला,
पूछेंगे जब नारायण,धर्म क्या किया,मुझको बतला।

खुलेगा जब वहाँ,धर्म कर्म पाप पुण्य का,गट्ठर तेरा,
श्रीकृष्ण कहते याद आएगा तब तुझे होटल का फेरा।

चिकनी-चुपड़ी बातें करके सदा खूब रसपान कराया,
माता-पिता को रोते छोड़ पत्नी को ले के हुआ पराया।

माटी से बना माटी का पुतला,यह मुखड़ा है नयन का,
देवों का कहना सत्य है,सन्मुख होगा सत्य वचन का॥

परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।

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