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मानवीय संबंधों की कहानी है `सेवा`

आरती सिंह ‘प्रियदर्शिनी’
गोरखपुर(उत्तरप्रदेश)
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हिंदी साहित्य में उपन्यास का एक महत्वपूर्ण स्थान है। बहुत कम ही लोग जानते हैं कि उपन्यास का जन्म बंगाल की धरती पर हुआ था और श्रीनिवास दास द्वारा लिखित परीक्षा गुरु हिंदी साहित्य का प्रथम उपन्यास माना जाता है। प्रेमचंद को आधुनिक उपन्यास का जनक कहा जाता है।


रेनुका डग अरोरा का उपन्यास सेवा पढ़ने पर अनायास ही प्रेमचंद द्वारा रचित सेवा सदन एवं प्रेमाश्रम का स्मरण हो आता है। मानवीय रिश्तों के प्रति संवेदनशीलता का एहसास कराता यह उपन्यास सेवा पाठकों को मार्मिक अनुभूति प्रदान करता है।
सेवा सदन के सुमन की तरह सेवा की नायिका रंजना भी आत्मविश्वास से परिपूर्ण स्त्री है। लेखिका ने उपन्यास के सभी पात्रों का चरित्र चित्रण बखूबी किया है,जिससे उपन्यास की रोचकता बरकरार रही है। मनचले युवक कैलाश हो या धीरोदात्त नायक विजय। यहां तक कि फकीरा एवं सोना के चरित्र चित्रण को भी लेखक ने कथानक का अहम हिस्सा बनाया है। फकीरा का मृत्यु दृश्य अत्यंत ही भावुक बन पड़ा हैl मृत्युशैया पर वह कहता है -“जीवन की सच्ची सफलता गरीबों की सेवा में है। भूखे,नंगे मजदूर और किसानों की सेवा के रूप में किया गया उपकार लोक और परलोक दोनों ही जगह तुम्हारे काम आएं। गुमराही में भटकते किसी भी मनुष्य को सहारा देने में ही जीवन का कल्याण है। मानव जाति की निरंतर सेवा करने का जो बीड़ा तुमने उठाया है। उसमें जीवनभर लगी रहना। गरीबों को मौत के पंजे से छुड़ाना ही वास्तविक श्री योग्य है। मैंने जीवन में महान पतन को भी देखा है और आज उन्नति के मार्ग पर चलता हुआ काफी आगे जाकर दुनिया छोड़ रहा हूँ। मेरे अंतर स्थल में जीवन के पाप और पुण्य का घमासान युद्ध छिड़ा हुआ है। आज मुझे अपने सारे कर्म याद आ रहे हैं। सुकर्म और दुष्कर्म दोनों के चमकते एवं बुझते पट मेरे समक्ष हैं,जिन्हें मैं जीवन की बुझती हुई ज्योति में स्पष्ट और चमकते हुए देख रहा हूँ। और उसी में मुझे शांति मिल रही हैl”
जिस चावड़ी बाजार में धर्म के नाम पर दंगे होते हैं,वहीं रंजना जैसी महिला भी रहती है,जो अजनबी विजय के जीवन की रक्षा करती है। आगे चलकर यही रंजना सेवा आश्रम की नींव रखती है,जो गरीबों की सेवा के लिए है।
उपन्यास के अंत में रंजना द्वारा सेवा आश्रम की बुनियाद रखना तथा मिल को मजदूरों के हवाले करके सच्ची मानवता का संदेश देती हैl इस उपन्यास में उत्तम कथानक के साथ-साथ भाषा एवं शैली भी उच्च कोटि की है।
प्रखर गूँज प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यह सुंदर उपन्यास हर वर्ग के पाठकों को आकर्षित करेगा,तथा भावनाओं के प्रति सकारात्मक संदेश प्रदान करेगा।

परिचय-आरती सिंह का साहित्यिक उपनाम-प्रियदर्शिनी हैl १५ फरवरी १९८१ को मुजफ्फरपुर में जन्मीं हैंl वर्तमान में गोरखपुर(उ.प्र.) में निवास है,तथा स्थाई पता भी यही हैl  आपको हिन्दी भाषा का ज्ञान हैl इनकी पूर्ण शिक्षा-स्नातकोत्तर(हिंदी) एवं रचनात्मक लेखन में डिप्लोमा हैl कार्यक्षेत्र-गृहिणी का हैl आरती सिंह की लेखन विधा-कहानी एवं निबंध हैl विविध प्रादेशिक-राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कलम को स्थान मिला हैl प्रियदर्शिनी को `आनलाईन कविजयी सम्मेलन` में पुरस्कार प्राप्त हुआ है तो कहानी प्रतियोगिता में कहानी `सुनहरे पल` तथा `अपनी सौतन` के लिए सांत्वना पुरस्कार सहित `फैन आफ द मंथ`,`कथा गौरव` तथा `काव्य रश्मि` का सम्मान भी पाया है। आप ब्लॉग पर भी अपनी भावना प्रदर्शित करती हैंl इनकी लेखनी का उद्देश्य-आत्मिक संतुष्टि एवं अपनी रचनाओं के माध्यम से महिलाओं का हौंसला बढ़ाना हैl आपके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचंद एवं महादेवी वर्मा हैंl  

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