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मित्रता-निर्मल झरना प्रेम का

डॉ. संगीता जी. आवचार
परभणी (महाराष्ट्र)
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मित्रता और जीवन….

मित्रता कूचे-गलियों से जो है बनती,
स्कूलों के मैदानों में है पलती
खेतों-खलिहानों में है अंगड़ाई लेती,
और फिर जिंदगीभर नहीं है टूटती।

मित्रता में कोई भेद नहीं होता,
मित्रता का जहाँ हमेशा आबाद है होता
कोई अमीर-गरीब मित्रता में नहीं होता,
रिश्तों के जैसा बंटवारा यहाँ नहीं रहता।

मन में निर्मल झरना प्रेम का बहता,
वास्ता झगड़े से केवल दो पल का होता
मित्रता में समय ही समय है रहता,
खाओ या भूखे रहो, सब चल जाता।

मित्रता में सोच के नहीं बंधा जाता,
न काला-गोरा और न छोरी-छोरा
मित्रता का होता है सिर्फ यहीं मायना,
जैसे मरूभूमि में हरियाली का मिलना।

एक मित्र ने पुकारते हुए अर्ज किया,
अभी के अभी मित्रता पे कुछ लिखना।
अपने इस मित्र का कहना न टालना,
तो हुआ नहीं सम्भव कलम को रोकना॥

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