शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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जो
कहना है,
जो
सुनाना है,
स्पष्ट कहो!
स्पष्ट सुनो!
स्पष्ट लिखो!
बिखरा पड़ा है समय,
चलो! मिलकर समेंट लें।
प्रतीक,
व
बिंब बातें
अक्सर
उलझ जाती हैं,
स्वछंद धरातल पर मुंडेर बन जाती हैं।
विचार-विमर्श,
तर्क-वितर्क
अब,
बहुत हो चुके
क्षमता रखो,
मुँह तोड़ जवाब देने की।
लाखों लोगों के
श्राप,
व
निष्प्राणों से,
बना देश खंडहर ही रहता है
सुना है,खंडहर!
कभी फिर से महल नहीं बनते।
सच में,
कभी महल नहीं बनते!!