कुल पृष्ठ दर्शन : 227

You are currently viewing मेरे बचपन वापस आजा

मेरे बचपन वापस आजा

संजय गुप्ता  ‘देवेश’ 
उदयपुर(राजस्थान)

***************************************

दुनिया सारी देख चुका हूँ,उम्र पार हो गई है छप्पन,
मेरे बचपन वापस आजा,वापस आजा मेरे बचपन।

वह अल्हड़-बालपन मस्ती,जिसमें भरा था नचपन,
छत गली मैदानों में डेरा,वह खुशहाल खुला आँगन
खाना-पीना था बेफिक्र हो कर,दूध-दही व मक्खन,
अब तो नींद भी आती नहीं,बस दिखते हैं वही स्वप्न।
मेरे बचपन वापस आजा,वापस आजा मेरे बचपन…

अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस आज,करूँ क्या मैं वर्णन,
जिंदगी की मलाई खरच हुई,अब बची है खुरचन
फटे कुर्ते-सी अब हो गई,हर दिन चाहिए है तुरपन,
मस्ती की बोतल अलमारी मेें,रख दी लगा के ढक्कन।
मेरे बचपन वापस आजा,वापस आजा मेरे बचपन…

गुजरी है यहाँ जिंदगी,भारी हो गया है यही नशेमन,
बाट जोह रहे हैं थक कर कई,आए उसका सम्मन
दिल चल रहा है उन्हीं यादों से,जो बनी है धड़कन,
पिता की अंगुली सहारा थी,झूला माँ-दादी की गर्दन।
मेरे बचपन वापस आजा,वापस आजा मेरे बचपन…

हर बात अपनी मनवाते थे,दादा की खींच अचकन,
दुनियादारी से दूर,मासूमियत भरा था लड़कपन।
प्यारी वह बचपन की दुनिया,मटकन,नटखटपन,
नहीं किसी से ईर्ष्या थी,नहीं किसी से थी जलन।
मेरे बचपन वापस आजा,वापस आजा मेरे बचपन…॥

परिचय–संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।

Leave a Reply