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आशीष सदा देते हमको

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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पितृपक्ष विशेष…..

श्रद्धा का ही नाम श्राद्ध है,
श्रद्धा से हम श्राद्ध करके
पितरों का करते हैं सम्मान,
सदा देते हैं उनको मान।

अश्विन मास के प्रथम पक्ष में,
पावन दिन ये आते हैं
गंगा नदी में या फिर गृह में,
पूजन-तर्पण करवाते हैं
वर्ष और तिथि दिन का,
भी रखते हैं हम ध्यान।
सदा देते हैं उनको मान…

पितर हमारे देव तुल्य हैं,
दिया है हमको जीवनदान
देखा नहीं सभी को हमने,
गर्व है,हम उनकी संतान
सत्पथ,संस्कार,गुणों का,
दिया है हमको ज्ञान।
सदा देते हैं उनको मान…

भावनाओं से ओत-प्रोत हम,
नाना प्रकार पकवान बनाते
प्रथम भोग लगाते उनको,
तृप्त उन्हें करते,फिर खाते
आशीष सदा देते हमको,
धन-धान्य का देते वरदान।
सदा देते हैं उनको मान…

साल में एक बार उन्हें,
हम आमंत्रण देके बुलाते हैं
आस्था है अपनी-अपनी,
नजदीक उन्हें हम पाते हैं।
अजर अमर आत्माओं का,
हम करते हैं आह्वान
सदा देते हैं उनको मान…॥

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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