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मेरे वतन की माटी…

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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मेरे वतन की माटी की खुशबू, सुबह-शाम जिसे जब आती है,
मन हो उठता है बाग-बाग-सा, रूह होती तब मदमाती है।

यह भक्ति-मुक्ति की पावन धरा है, राम-कृष्ण को जनाती है,
गंगा-यमुनी तहजीबों को, यह भूमि खुद पर ही तो बहाती है।

धर्म अनेक यहां नाना भाषाएं, कई कुल-कुनबे, कई जाति है,
सीधा-सादा मानुष यहां का, विश्व पटल पर जिसकी ख्याति है।

दादुर, मयूर, पपिहरा के शोर और कोयल काली मीठा जब गाती है,
भारत देश की धरती सचमुच, हर्षित हो फूली न तब समाती है।

शीतल पवन जब हवा के झोंकों से, धूल धारा से अम्बर में उड़ाती है,
यूँ लगता है मानो भारत की भूमि, मस्ती में होली का पर्व मनाती है।

रिम-झिम बारिश की शीतल बूंदें, सिंचित करती यहां की जब माटी है,
उग आती है तब नाना फसलें, भारत की जनता उन्हें तब खाती है।

छा जाए कभी संकट के बदल तो, वीर बिरादरी सर अपना जब चढ़ाती है,
बुंदेले हर बोलों की भांति फिर गौरव गाथा, जनता उनकी तब गाती है।

प्रेम करुणा की प्रवाहक यह भूमि, हमेशा विश्व में शान्ति ही चाहती है,
नाहक इसको छेड़े जो कोई, फिर तो दुश्मन की ईंट से ईंट बजाती है।

जय बोलो भाई जय बोलो सब, माँ भारती के पावन आँचल की,
जय बोलो भाई जय बोलो सब, उतर, दक्षिण, पश्चिम और पूर्वांचल की॥

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