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मैं ढूंढ रहा हूँ..

डॉ.विद्यासागर कापड़ी ‘सागर’
पिथौरागढ़(उत्तराखण्ड)
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मैं वस्त्रों में लिपटे रजकन ढूंढ रहा हूँ।
मैं वो अपना मनहर बचपन ढूंढ रहा हूँll

चोर,वजीर,सिपाही लिखते थे कागज पर,
या सिक्कों की गुच्ची खेली भू की रज पर।
कभी हांक ले गये खेतों में हम बैलों को,
तोड़-तोड़ मिट्टी करते थे हम ढेलों को।
वही अमोलक जगती का धन ढूंढ रहा हूँ,
मैं वो अपना मनहर बचपन ढूंढ रहा हूँ…ll

कभी गया गेहूँ को लेकर मैं चक्की में,
कभी स्वाद अनमोल पाया था मक्की में।
कभी रखी होती रोटी में गुड़ की ढेली,
और कभी मड़ुवा की रोटी थी अलबेली।
हर स्थिति में मैं हँसता मन ढूँढ रहा हूँ,
मैं वो अपना मनहर बचपन ढूंढ रहा हूँ…ll

कभी रिंगाल को काट सुन्दर कलम बनाई,
कालिख पोत-पोत पाटी की,की घोटाई।
ले थैला बोरी जाते थे सदा विद्यालय,
करते रहते कूद-फांद नित होकर निर्भय।
मैं कमेड़ का सुन्दर लेखन ढूँढ रहा हूँ,
मैं वो अपना मनहर बचपन ढूंढ रहा हूँll

मैं वस्त्रों में लिपटे रजकन ढूंढ रहा हूँ,
मैं वो अपना मनहर बचपन ढूंढ रहा हूँll

परिचय-डॉ.विद्यासागर कापड़ी का सहित्यिक उपमान-सागर है। जन्म तारीख २४ अप्रैल १९६६ और जन्म स्थान-ग्राम सतगढ़ है। वर्तमान और स्थाई पता-जिला पिथौरागढ़ है। हिन्दी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले उत्तराखण्ड राज्य के वासी डॉ.कापड़ी की शिक्षा-स्नातक(पशु चिकित्सा विज्ञान)और कार्य क्षेत्र-पिथौरागढ़ (मुख्य पशु चिकित्साधिकारी)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत पर्वतीय क्षेत्र से पलायन करते युवाओं को पशुपालन से जोड़ना और उत्तरांचल का उत्थान करना,पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के समाधान तलाशना तथा वृक्षारोपण की ओर जागरूक करना है। आपकी लेखन विधा-गीत,दोहे है। काव्य संग्रह ‘शिलादूत‘ का विमोचन हो चुका है। सागर की लेखनी का उद्देश्य-मन के भाव से स्वयं लेखनी को स्फूर्त कर शब्द उकेरना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-सुमित्रानन्दन पंत एवं महादेवी वर्मा तो प्रेरणा पुंज-जन्मदाता माँ श्रीमती भागीरथी देवी हैं। आपकी विशेषज्ञता-गीत एवं दोहा लेखन है। 

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